परम श्रद्धेय अशोक सिंघल जी की जयंती पर शत शत नमन (डा0 एस के कुलश्रेष्ठ) अशोक सिघंल. हिन्दू जागरण के सूत्रधार, सकल विश्व के हिन्दू समाज के प्रेरणास्रोत, राम जन्म भुमि पर राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता, हिन्दू ह्रदय सम्राट की उपाधि से पुरे विश्व में विख्यात, संन्यासी भी थे और योद्धा भी, महानतम आदर्श व्यक्तित्व. जन्म - 27 सितम्बर सन 1926 ई. आगरा, उत्तरप्रदेश. देहावसान - 17 नवम्बर सन 2015 ई. गुरुग्राम, हरियाणा. वर्तमान युग के रामकाज करने वाले हनुमान, अशोक सिघंल जी का जन्म 27 सितम्बर सन 1926 आश्विन कृष्ण पंचमी को आगरा में हुआ. अशोक सिंघल के पिता एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत थे. घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया. उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे. कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी. उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ. सन 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह, रज्जू भैया ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया, उन्होंने अशोक सिंघल की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी, इससे माता जी ने अशोक सिंघल को शाखा जाने की अनुमति दे दी. सन 1942 में संघ से जुडने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. सन 1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे, पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा, अशोक सिंघल भी उन युवकों में थे. अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया. सन 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोक सिंघल सत्याग्रह कर जेल गये. वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी. समाज को अपना जीवन समर्पित कर चुके सिंघल ने 1950 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मटलर्जी साइंस में इंजीनियरिंग पूरी की. इंजीनियर की नौकरी करने के बजाये उन्होंने समाज सेवा का मार्ग चुना और आगे चलकर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये. उन्होंने उत्तर प्रदेश और आस-पास की जगहों पर संघ के लिये लंबे समय के लिये काम किया. बचपन से ही अशोक सिंघल की रुचि शास्त्रीय गायन में रही, संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी. अशोक सिंघल की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही. प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे. यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ, वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था. अशोक सिंघल अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते रहे. सन 1975 से सन 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा. इस दौरान अशोक सिंघल इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे. आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये. सन 1981 में डा. कर्ण सिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ, पर उसके पीछे शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी. उसके बाद अशोक सिंघल को विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लगा दिया गया. इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा, बजरंग दल, गंगा, एकल विद्यालय आदि अनेक नये आयाम जुड़े. एकात्मता रथ यात्रा, संस्कृति रक्षा निधि, राम जानकी रथयात्रा, रामशिला पूजन, रामज्योति आदि कार्यक्रमों से परिषद का नाम सर्वत्र फैल गया. इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया. इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी. भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है. आज विश्व हिंदू परिषद की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक सिंघल का योगदान सर्वाधिक है. वे परिषद के सन 1982 से सन 1986 तक संयुक्त महामंत्री, सन 1995 तक महामंत्री, सन 2005 तक कार्याध्यक्ष, सन 2011 तक अध्यक्ष और फिर संरक्षक रहे. सन 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक धर्म संसद का आयोजन किया गया, सिंघल इस के मुख्य संचालक थे, यहीं पर राम जन्म भूमि आंदोलन की रणनीति तय की गई. यहीं से सिंघल ने पूरा प्लान बनाना शुरू किया और कार सेवकों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया. सन्तों को संगठित करना बहुत कठिन है, पर अशोक जी की विनम्रता से सभी पंथों के लाखों संत इस आंदोलन से जुड़े. इस दौरान कई बार उनके अयोध्या पहुंचने पर प्रतिबंध लगाये गये, पर वे हर बार प्रशासन को चकमा देकर वहां पहुंच जाते थे. सन 1992 में बाबरी नाम के ढांचे को तोड़ने वाले कार सेवकों का नेतृत्व सिंघल ने ही किया था. सिंघल ने देश भर से 50 हजार कारसेवक जुटाये. सभी कारसेवकों ने राम जन्म भूमि पर राम मंदिर स्थापना करने की कसम देश की प्रमुख नदियों के किनारे खायी. उन्होंने अयोध्या की सरयु नदी के किनाने राम लला की मूर्ति स्थापित करने का संकल्प लिया था. श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान उनकी हुंकार से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे. उनकी संगठन और नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम था कि युवकों ने 6 दिसम्बर सन 1992 को राष्ट्रीय कलंक के प्रतीक बाबरी ढांचे को गिरा दिया. सिंघल जी ने एक इंटरव्यू में कहा था - "अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिये हमने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, रही बात बाबरी नाम के ढांचे को तोड़ने की, तो हम उस ढांचे को तोड़ने के मकसद से नहीं गये थे. उस दिन जो कुछ भी हुआ वह मंदिर के पुर्ननिर्माण कार्य का एक हिस्सा था." विश्व हिंदू परिषद के कार्य विस्तार के लिए वे सभी प्रमुख देशों में गये. अगस्त-सितम्बर सन 2015 में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के दौरे पर गये थे. फेफडो के संक्रमण से 17 नवम्बर सन 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ. वे प्रतिदिन परिषद कार्यालय में लगने वाली शाखा में आते थे. अंतिम दिनों में भी उनकी स्मृति बहुत अच्छी थी. वे आशावादी दृष्टिकोण से सदा काम को आगे बढ़ाने की बात करते रहते थे.


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