श्रद्धा, विधि-विधान और मन्त्र विज्ञान के समन्वय द्वारा सम्पन्न "श्राद्ध प्रक्रिया" से दिये गये पदार्थ १००% हमारे पितृगणों तक पहुँचते हैं।(आचार्य करूणेश मिश्र जी की कलम से साभार) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक घटना सुनाते हुए इंजीनियर साहब विद्वान पण्डित जी से मुखातिब हुए - "एक गाँव के पुरोहित को नदी में अपने पितृगणों की तृप्ति हेतु तर्पण करते देख, नदी से जल भरने आये एक ग्रामीण ने बाल्टी का पानी गिरा दिया और नदी की ओर हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।" पुरोहित के कौतूहलवश पूछने पर वह बोला कि जब आपके चढाये जल और अन्य पदार्थ आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी जल मिल जाना चाहिये !! पुरोहित जी ने पूछा कि "क्या आपकी गाय स्वर्गवासी हो चुकी है,जो आप तर्पण प्रक्रिया द्वारा उसे जल दे रहे हैं ?" इंजीनियर बन्धु जोर से ठहाके लगाकर हँसते हुए सनातन संस्कृति का मजाक बनाने का प्रयास करते हुए पण्डित जी से बोले - " ये सब पाखण्ड है पण्डित जी !!" सम्भवतः पण्डित जी कुछ अधिक ही सहिष्णु थे इसलिये लोग उनसे इस तरह की बातें करते रहते थे ,,,,,,,, खैर, पण्डित जी ने कुछ कहा नहीं बस सामने मेज पर से 'कैलकुलेटर' उठाकर एक नंबर डायल किया और कान से लगा लिया। बात न हो सकी तो इंजीनियर साहब से शिकायत की। इंजीनियर साहब भड़क गये बोले- "ये क्या मज़ाक है ? 'कैलकुलेटर में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा ?" तब पण्डित जी ने कहा ... "ठीक वैसे ही स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिये बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ?" साहब झेंप मिटाते हुए कहने लगे- "ये सब पाखण्ड है, अगर सच है तो सिद्ध करके दिखाइये !!" पण्डित जी ने कहा ये सब छोड़िए, ये बताइये न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ? इंजीनियर साहब बोले - " बिल्कुल! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।" फिर पण्डित जी ने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा , अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी। एनर्जी निकाल के दिखाइये !! साहब समझ गए और तनिक लजा भी गये और बोले- "पण्डित जी , एक काम याद आ गया; बाद में बात करते हैं। " मित्रों !! यदि हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास उस समय समुचित ज्ञान,संसाधन व अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है, यह नहीं कि वह तथ्य ही गलत है। हमारे द्वारा श्रद्धा व सविधि किये गये सभी कर्म श्राद्ध, दान, पूजा, हवन आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे देवताओं व पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं। ऐसे ही हमारी अनेकों पर्व व परम्परायें, कही न कहीं जनकल्याण में सहायक हैं। कृपया कुतर्कों मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें। अत्यन्त दुःखद है कि हजारों वर्षों पहले प्रतिपादित अपने वैदिक नियमों को हम तब मानते हैं, जब विदेशी वैज्ञानिक उस पर रिसर्च करके हमें उसका महत्व बताते हैं। मैकाले शिष्य समूह व समर्थक अभी 200 वर्ष बाद पीपल ओर गौ की महिमा जान पाये ,,,,,,, हमने युगों से उनको संरक्षित कर रखा है ! रुद्राक्ष कई लाख वर्षों से हमारी परम्परा में है, लेकिन आधुनिक विज्ञान अब जाकर समझ सका है कि वह शरीर में रासायनिक प्रक्रियाओं को संतुलित करता है और हार्मोन्स का डिसऑर्डर रोकता है ,,,,,,,,, लेकिन यह मैकाले मिश्रित डीएनए के प्रभाव वाले अधूरे "भारतीय" ,,,,, जब तक इनको आधुनिक विज्ञान कुछ नहीं बतायेगा, ये नहीं मानेंगे !! यदि धर्म और अध्यात्म को जानने के लिये आधुनिक विज्ञान असक्षम है तो यह समस्या आधुनिक विज्ञान की है, महिमामंडित भारतीय ऋषि संस्कृति और धर्म, अध्यात्म की नही !!


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