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23 साल से बिस्तर पर पड़े हैं अमित, न किसी से मलाल और न शिकायत, बस सरकार से है ये मांग.......... मुजफ्फरनगर कांड की बरसी मनाने के लिए रिस्पना पुल पर जमा आंदोलनकारियों में देहरादून के अमित ओबराय भी शामिल थे। पुलिस ने लाठी चार्ज किया तो लाठी चार्ज के दौरान भगदड़ का शिकार होकर अमित रिस्पना पुल से नीचे गिर गए। उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। आज घटना को 23 साल हो चुके हैं। तब से अमित बिस्तर पर ही जिंदगी से जंग लड़ रहे हैं। उनके कंधे से नीचे का पूरा शरीर बेजान सा निष्क्रिय है। शरीर से एक मक्खी उड़ाने के लिए भी उन्हें एक सहायक चाहिए। इन सबके बावजूद अमित में जीने की जबर्दस्त ललक है। बस मलाल है तो सिर्फ इस बात को लेकर कि बढ़ती महंगाई में उनका इलाज आखिर कितने दिनों तक चल पाएगा ? इलाज और तीमारदारी पर बड़ी रकम हर महीने खर्च हो रही है। बकौल अमित, सरकार से उन्हें आंदोलनकारी कोटे की 10 हजार रुपये पेंशन मिलती है, लेकिन ये नाकाफी है। वह यही चाहते हैं कि उनके इलाज का सारा खर्च सरकार उठाए ताकि उनकी बूढ़ी मां को कुछ राहत मिल सके। लगभग 41 साल के अमित प्रगति विहार में रहते हैं। उन्हें दो अक्तूबर 1995 की घटना का एक-एक क्षण याद है। कहते हैं कि मैं तब 11वीं का छात्र था। आंदोलन अपने चरम पर था। आंदोलनकारी बड़ी संख्या में मुजफ्फरनगर कांड की बरसी मनाने इकट्ठा हुए थे। सब जगह बंद था। बड़ी संख्या में पुलिस बल भी वहां तैनात था। खूब नारेबाजी हो रही थी। तभी पुलिस के जवान पुल के दोनों से लाठियां भांजते हुए आंदोलनकारियों पर टूट पड़े। पुल पर भगदड़ मच गई। पुल के पास खड़ा मैं अचानक नीचे गिर गया। मुझे इलाज के लिए कोरोनेशन अस्पताल ले जाया गया। वहां पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया। वहां एक महीने इलाज के बाद मैं घर लौट गया। तब से न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं। आंदोलन के दौरान दो लोग पूर्ण विकलांग हुए, उनमें से एक हैं अमित पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से लेकर खंडूड़ी, निशंक, विधायक हरबंस कपूर और न जाने कितने नेता उनके यहां आए। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री नहीं थे, कई बार मेरे घर आए। लेकिन आज कोई नहीं आता। मेरे शरीर का निचला हिस्सा बेजान-सा है। आंदोलन के दौरान दो लोग पूर्ण विकलांग हुए, उनमें से एक वह हैं। जब सबकी पेंशन बढ़ी तो हम दो लोगों को छोड़ दिया गया। पेंशन बढ़ाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। फेसबुक पर काटता हूं टाइम - अमित फेसबुक के जरिए दुनिया से जुड़े हैं। उन्होंने दुनियाभर के उनकी हालत वाले 150 लोग ढूंढ निकाले हैं। ये सभी सोशल मीडिया पर बातें करके एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाते हैं। उनकी बीमारी सी जुड़ी चिकित्सा क्षेत्र की नई अनुसंधानों के बारे में अनुभव साझा करते हैं। फेसबुक चलाने के लिए वे ध्वनि पहचानने वाले साफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं। फेसबुक से साभार
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