'" 2अक्टूबर रामपुर कांड की बरसी पर '' उत्तराखंड के निर्माण की कहानी वरिष्ठ पत्रकार और आंदोलनकारी श्री त्रिलोक चंद भट्ट जी की कलम से, ( राज्य निर्माण के लिए मेरे संघर्ष की दास्तां'"-त्रिलोक चन्द्र भट्ट )मैंने जब पहली कक्षा से स्कूली शिक्षा की शुरूआत की उस समय उत्तराखण्ड के मायने भी नहीं जानता था। उस समय सिर्फ इतना ही जानता था कि उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिलों को उत्तराखण्ड कहते हैं जिनकी अपनी तरह की अलग समस्यायें हैं। हाई स्कूल में आते आते लोगों से सुनकर उत्तराखण्ड और पृथक राज्य की अवधरणा को समझने लगा था। समय-समय पर उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में पृथक्‌ राज्य के समर्थन में उठने वाली गूंज ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। तब प्रमुख राज्य आन्दोलनकारी नेता दिवाकर भट्ट के संपर्क में रह कर मैने अपना ज्ञान बढ़ा कर पृथक राज्य की अवधारणा को समझा। सन्‌ 1984 में जब 12वीं कक्षा का विद्यार्थी था तभी से आंदोलनात्मक गतिविधियों में शामिल होने लगा था। राजनैतिक रूप से मेरी पहली और अंतिम सक्रियता उत्तराखण्ड क्रांति दल में ही रही। उत्तराखंड राज्य के नाम पर छात्रों और युवाओं को एकजुट कर मंच प्रदान करने और राज्य निर्माण के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये उत्तराखण्ड स्टूडैंट फैडरेशन का गठन होने पर मुझे हरिद्वार इकाई में अध्यक्ष पद का दायित्व मिला। जब 1988 में वन अधिनियम-1980 के विरूद्ध और उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की मांग को लेकर उक्रांद का आन्दोलन गतिवान था उन्हीं दिनों 23 फरवरी, 1988 को हरिद्वार के इतिहास में पहली बार मेरे नेतृत्व में उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिये सैकड़ों आन्दोलनकारियो की गिरफ्तारियाँ हुई। उत्तराखंड राज्य निर्माण के संकल्प को लेकर संघर्ष कर रहे उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़ने के बाद मुझे 1995 में दल में केंद्रीय कार्यकारिणी में सदस्य के रूप में स्थान मिला। दल के विभाजन के बाद उक्रांद (डी) में केंद्रीय प्रवक्ता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी प्राप्त हुई। इससे पूर्व हरिद्वार की जिला इकाई में भी संयुक्त मंत्री, प्रेस प्रवक्ता आदि विभिन्न पदों का दायित्व निर्वहन भी मैने किया था। कम उम्र में अलग कार्यशैली और सक्रियता के कारण दल में प्रभाव बढ़ने से कई स्थानीय लोग मुझसे राजनैतिक ईर्ष्या भी करने लगे थे। लेकिन इस सबसे बेपरवाह होकर मेरा हर कदम राज्य आंदोलन की गतिविध्यिों की ओर अग्रसर रहा। मैने उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सर्वप्रथम 10 नवंबर, 1985 को उक्रांद द्वारा नैनीताल कमिशनरी पर आयोजित बड़े प्रदर्शन में भाग लिया। उसके बाद 9 मार्च, 1987 को पौड़ी कमिशनरी, 23 नवंबर, 1987 को वोट क्लब, दिल्ली में आयोजित प्रर्दशन में अनेक साथियों सहित भागीदारी की। मेरे प्रयासों से ही पहली बार हरिद्वार के वन गूजरों ने राज्य आन्दोलन के साथ जुड़ कर दिल्ली प्रदर्शन में भाग लिया था। राज्य अन्दोलन के आरंभिक दौर में 24 अक्टूबर, 1987 को तरुण हिमालय, हरिद्वार में आयोजित छात्रों की बैठक में मुझे उत्तराखंड स्टूडैंट फैडरेशन का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद मैने उत्तराखंड राज्य के एक सूत्रीय नारे को लेकर प्रचार-प्रसार के लिए उत्तराखंड के प्रमुख आन्दोलनकारी नेता दिवाकर भट्ट के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में जाना प्रारंभ किया। 10 से 16 जनवरी, 1988 तक श्री दिवाकर भट्ट, श्री सादर सिंह रावत, श्री शिव सिंह थापा के साथ उक्रांद के प्रस्तावित जेल भरो आन्दोलन के प्रचार के लिए कोटद्वार, पौड़ी, धुमाकोट, सल्ट, भैरंगखाल, मानीला, चखुटिया, द्वाराहाट, बागेश्वर, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, टिहरी, उत्तरकाशी, ऋषिकेश आदि का तूफानी दौरा किया। 22 से 28 जनवरी, 1988 तक पूर्व विधायक जसवंत सिंह बिष्ट, एडवोकेट राजेन्द्र पाठक, प्रसिद्ध लोक गायक हीरा सिंह राणा के साथ कुमाऊँ मंडल में रामनगर, मोहान, भौनखाल, हरणा, मछोड़, ताड़ीखेत, भिकियासैंण, सराईं खेत, मोलेखाल आदि में सभाएं कर जनता से उत्तराखंड राज्य के लिए लामबद्ध होकर अधिक से अधिक संखया में जेल भरो आन्दोलन में शिरकत करने की अपील की। 02 से 7 फरवरी, 1988 तक स्व. जसवंत सिंह बिष्ट, स्व. विपिन त्रिपाठी, एडवोकेट राजेन्द्र पाठक, डॉ. घनश्याम शर्मा, संजय पाण्डेय के साथ देघाट, गुमटी, मासी, जालली, तिपौला, द्वाराहाट, कुँवाली, कफड़खान, ताकुला व अल्मोड़ा में सभा कर आम जनता को संबोधित किया। इस दौरान मौरनौला, जयंती, पनुवानौला, कोसी, मजखाली, रानीखेत, भतरोंजखान आदि क्षेत्राों में भी जनसंपर्क किया। 13 से 18 पफरवरी, 1988 तक दिवाकर भट्ट, के साथ ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, टिहरी, होते हुए कीर्तिनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जखोली, घनसाली, हिंडोलाखाल, प्रतापनगर, पौड़ी कोटद्वार आदि क्षेत्रों में व्यापक जनसंपर्क किया। इस जन संपर्क अभियान में 15 फरवरी को घनसाली व 16 फरवरी को हिंडोलाखाल में बड़ी सभाएं की। 23 फरवरी, 1988 को हरिद्वार में उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर जीएमओ बस अड्डा मैदान, ऋषिकुल से कचहरी तक निकले जलूस का नेतृत्व करते हुए, लगभग 200 प्रदर्शनकारियों के साथ गिरफ्‌तारी दी । इस अवसर पर नगर मजिस्ट्रेट के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भी भेजा गया। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए हरिद्वार के इतिहास में यह पहला बड़ा प्रदर्शन और गिरफ्‌तारी थी। जिसका समाचार हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला सहित अनेक स्तरीय अखबारों ने प्रमुखता से छापा। उत्तराखंड राज्य के संघर्ष में लोगों को जोड़ने के लिए 14 से 16 जुलाई, 1988 तक तीन दिवसीय जनसंपर्क कार्यक्रम में कोटद्वार, सतपुली, पौड़ी, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, कीर्तिनगर, टिहरी, नरेन्द्रनगर आदि का भ्रमण किया। 1मई, 1988 को उत्तराखंड में चक्का जाम में सक्रिय भागीदारी रही। 30 अगस्त, 1988 को श्रीनगर गढ़वाल में उत्तराखंड राज्य में मुद्दे पर आयोजित विचार गोष्ठी में कुमाऊँ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष नारायण सिंह जंतवाल के नेतृत्व में उत्तराखंड आंदोलन में छात्रों और युवा वर्ग की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने का संकल्प लिया। 12-13 सितंबर, 1988 को 36 घंटे के उत्तराखंड बंद एवं चक्का जाम में मध्य रात्री को पंचपुरी संस्कृत छात्रा परिषद् के अध्यक्ष यशोधर भट्ट, आशु बड़थ्वाल आदि साथियों के साथ मोतीचूर में राजमार्ग अवरूद्ध करते हुए पुलिस से तीखी झड़प हुई। पुलिस ने मध्यरात्री में लाठी चार्ज कर आन्दोलनकारियों को वहाँ से खदेड़ा। 29 सितंबर, 1988 को नैनीताल कमिशनरी के घेराव कार्यक्रम में विधायक जसवंत सिंह बिष्ट एवं काशी सिंह ऐरी, दिवाकर भट्ट विपिन त्रिपाठी आदि के साथ सिरकत की। 06 जनवरी, 1989 को उक्रांद द्वारा देहरादून में आयोजित प्रदर्शन में शामिल हुआ। उत्तराखंड राज्य के मुद्दे पर विधान सभा चुनाव लड़ रहे उक्रांद के वरिष्ठ नेता दिवाकर भट्ट के देवप्रयाग विधान सभा क्षेत्र में 30 अक्टूबर से 27 नवंबर, 1989 तक लोगों को उत्तराखंड के मुद्दे से जोड़ने के लिए लगातार जनसंपर्क और प्रचार-प्रसार का कार्य किया। उक्रांद द्वारा उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की लड़ाई तेज करने और विकास कार्यों में बाधक बने वन अधिनियम 1980 के खिलाफ शुरू किए गए आन्दोलन में प्रचार के लिए 02 से 07 अप्रैल, 1990 तक देवप्रयाग, कीर्तिनगर, डांग, टकोली, बडियारगढ़, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, तिलवाड़ा, अगस्तयमुनि, घनसाली, टिहरी, उत्तरकाशी, अंजनीसैंण में जन संपर्क किया। 7 अप्रैल, 1990 को ही अंजनीसैंण में माँ भूवनेश्वरी महिला आश्रम के संचालक स्वामी मनमंथन की हत्या होने पर उनके अंतिम दर्शन कर कार्यक्रम स्थगित करते हुए वापिस हरिद्वार पहुँचा उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान 3 सितंबर, 1994 को अगस्तयमुनि ;रूद्रप्रयाग में पुलिस ने मेरे सहित 20 आंदोलनकारियों के विरूद्ध संगीन अपराधिक धाराओं में मु. अ. सं. 41/94 के अंतर्गत धारा 147/149/323/353/336/427 आई.पी.सी. व 7 क्रमिनल लॉ एमेंडमेट एक्ट 1932 में मुकदमा दर्ज किया। जिसमें पुलिस ने 30 सितंबर, 1996 को अंतिम रिपोर्ट प्रेषित की यह रिपोर्ट 10 मार्च, 1996 को मुखय न्यायायिक दण्डाधिकारी (सीजीएम) गोपेश्वर (जिला-चमोली) से स्वीकृत हुई थी। 1 अक्टूबर 1994 को हरिद्वार से सैकड़ों साथियों के साथ 2 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित रैली के लिए रवाना हुआ। अनेक अवरोधों को पार करते हुए रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर पहुंचने पर 1 अक्टूबर की मध्य रात्री और 2 अक्टूबर 1994 को मुंह अंधेरे पुलिस की बर्रबरता और आंदोलनकारियों के दमन का वह दुष्चक्र देखा जो राज्य आंदोलन के इतिहास का एक काला अध्याय बना। 7 सितंबर, 1994 को हरिद्वार को मिलाकर उत्तराखंड बनाए जाने की मांग को लेकर न्यायालय परिसर में चल रहे क्रमिक अनशन के बीसवें दिन मंच से आम सभा को संबोधित किया। 11 सितंबर, 1994 को उक्रांद द्वारा तरुण हिमालय से मायादेवी प्रांगण और 16 अक्टूबर को भल्ला कालेज मैदान से सुभाषघाट तक भूतपूर्व सैनिक संघर्ष समिति के बैनर तले निकाली गई विशाल रैली में भाग लिया। मुजफ्‌फरनगर में शहीद हुए उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारियों की याद में पूर्व सैनिकों द्वारा 16 अक्टूबर, 1994 को भल्ला कालेज मैदान से सुभाषघाट तक निकाले गए मौन जलूस में शामिल होकर जीवन की आखिरी सांस तक राज्य निर्माण के लिये संघर्ष करने का संकल्प दोहराया। पृथक राज्य के लिए 11अक्टूबर, 1995 को श्रीयंत्र टापू (श्रीनगर) में बिशनपाल परमार और दौलतराम पोखरियाल द्वारा आमरण अनशन आरंभ करते समय हरिद्वार के आन्दोलनकारियो के साथ वहाँ पहुंच कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अनशनकारियों का उत्साह बढ़ाने के लिए अलकनंदा की उफनती लहरों को नाव से पार कर कई बार श्रीयंत्र टापू पर उनके साथ ही रातें गुजारी। 15 दिसंबर, 1995 को जब दिवाकर भट्ट एवं सुन्दर सिंह चौहान ने खैट पर्वत पर आमरण अनशन प्रारंभ किया तो करीब 35 आन्दोलनकारियों के साथ मैने खैट पर्वत की दुर्गम चढ़ाई पार कर मध्य रात्रि में अनशन स्थल पर पहुँच कर अनशनकारियों से मुलाकात कर उन्‍हें हर संघर्ष में साथ रहने का भरोसा दिलाया। केंद्र के बुलावे पर अनशनकारियों के दिल्ली पहुंचने पर 15 जनवरी, 1996 को जंतर-मंतर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री प्रो. एम कामसन तथा विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा दिवाकर भट्ट का अनशन समाप्त करवाने का भी साक्षी रहा। मैं धरने, प्रदर्शन, और जूलसों में ही शामिल नहीं रहा बल्कि आन्दोलनात्मक गतिविधियों को प्रचार प्रसार के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं तक पहुंचाने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया। मैं राज्य निर्माण के लिए उस समय तक संघर्ष करते रहा जब तक उत्तराखण्ड राज्य अस्तित्व में नहीं आया।


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