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माँ गंगा के नाम से खिलवाड़ बंद हो :-आचार्य करूणेश मिश्र, हर हर गंगे कलियुग में एकमात्र भगवती गंगा ही हैं, जो निराकार ब्रह्म होकर भी केवल हमें कृतार्थ करने और अपनी ममतामयी गोद में बैठाकर हमें स्नान कराने के लिये नीर बनकर प्रवाहित हो रही हैं। यही एकमेव वह साक्षात जगतजननी है, हम जिनके करुणामयी आंचल में उद्दंड पुत्र की तरह कितनी भी उद्दंडता करें, परन्तु उनका ममता भरा मातृत्व स्वभाववश निरन्तर क्षमा ही करता रहता है। ज़रा कल्पना तो करें; हमारा कैसा सौभाग्य है कि हमें माँ पुण्यतोया के उस दिव्य पुलिन पर जन्म मिला, जिसके तट पर कुछ क्षण बैठकर नीर स्वरूपा माँ का आश्रय लेने और आचमन, अवगाहन करने के लिये हजारों मील दूर से चलकर इस माँ के भक्त आते हैं। विचार करें, जो संकटहारिणी स्वर्गापगा सदियों से सबके संकट हरती आयी है; उस सर्वसमर्थ माँ के अस्तित्व को एक क्षण के लिये भी कोई संकट में डाल सके, पूरे विश्व में ऐसा कोई माई का लाल पैदा नही हुआ। पुराणोक्त हरकी पौडी हरिद्वार में युगों से प्रवाहित माँ गंगा की दिव्य धारा को स्वार्थवश नहर घोषित करने या करवाने में जिनकी भूमिका रही; केवल उनका नही, उनकी पीढियों का क्या अंजाम होगा; उसकी चर्चा करने में तो मै समर्थ नही; परन्तु द्रवित हृदय, रोमांचित देह और गदगद वाणी से अपनी माँ के सम्मुख ये उद्गार व्यक्त किये बिना नही रहूँगा कि हे सर्वसमर्थ सुरसरि !! ये क्या लीला है ? अपने महावेग से धरा में छेद करने का सामर्थ्य रखने वाली हे विष्णुपदी !! शिव में भी इतनी शक्ति नही थी कि महोदधि के मंथन से निकले विष का वे पान कर लेते, ये तो उनके केवल आप पर अटल विश्वास का ही प्रभाव था, जो वे हलाहल पीकर नीलकंठ बन गये। आज आपने अपनी इस महासृष्टि के इन नन्हे कीटों को इतना निर्भय कर दिया कि आपकी मनभावन क्रीड़ा-स्थली हर की पौड़ी पर आपको हर से विहीन करके न-हर बना दें ? या तो उनके पाप-घट को आप शीघ्र भरना चाह रही हो या अपने पुत्रों के कर्तव्य की परीक्षा लेना चाह रही हो !! यदि यही सत्य है तो हे माँ !! आपकी कितनी महती कृपा है आपके उन पुत्रों पर ; जिन्हे आपने लाखों में से चुना है यह पुत्रधर्म निभाने के लिये ? आईये, जो "माँ" प्रणाम, आचमन या स्नान करने वाले; सभी के पापों को धो डालती है, यथासामर्थ्य 'मन, वचन या कर्म' किसी भी प्रकार से समर्पित होकर उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने वाली उत्तराखंड सरकार से उन्हें नहर बताने वाले शासनादेश को निरस्त करने की माँग करें, यह माँ गंगा की सबसे बड़ी उपासना होगी !! (आचार्य करूणेश मिश्र)
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