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सरल शब्दों में समझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है। (डा 0 एस के कुलश्रेष्ठ) आरएसएस संघ एक सांस्कृतिक संगठन है। वह हिंदुओं का सर्वेसर्वा नहीँ है, न ही कभी संघ ने यह दावा किया है। *राष्ट्र प्रथम, यही उसका मूल मंत्र है। इस हेतु सबकुछ करने का आग्रह उसके स्वयंसेवकों के लिए रहता है।* संघ की किसी से तुलना भी नहीं करनी चाहिए, न ही संघ ऐसा चाहता है। संघ बहुत अधिक ज्ञान या बुद्धिविलास में विश्वास नहीं रखता। क्रियात्मक विज्ञान ही उसकी कार्य शैली है। वामपंथ और दक्षिणपंथ दोनों ही शब्द और विचार आयातित है। संघ दक्षिणपंथी नहीँ है। संघ *हिंदुत्त्व को ही राष्ट्रीयत्व की गारंटी मानता है।* संघ का हिंदुत्त्व ,,,, पूजा पद्धति, उपासना या मत सम्प्रदाय से परे है। हिंदुत्त्व के घटकों में परस्पर असहमतियों हेतु संघ कभी हस्तक्षेप का इच्छुक नहीं है। क और ख के बीच कोई विवाद, है तो उसे क और ख को मिलकर सुलझा लेना चाहिए, ऐसा संघ का मानना है। *संघ हर प्रकार के मिथ्यावाद, आडम्बर, पाखण्ड अवैज्ञानिकता के विरुद्ध है।* हिंदुत्त्व और राष्ट्र को खोखला करने वाली प्रत्येक बात का विरोधी है, जबकि इन्हें पुष्ट करने वाली बात का समर्थक। संघ अपने तरीके से अपने मार्ग पर बढ़ता जा रहा है, सर्वसमावेशी होने से उसे समर्थन मिलता जा रहा है। वह राजशक्ति की अपेक्षा *समाज शक्ति को श्रेष्ठ मानता है।* *समाज ही संघ का ईश्वर है।* वह विराट पुरुष है। समाज में संघ कभी भी दोषदर्शन नहीं करता। जैसा है, मेरा है, जहाँ है वहाँ से उसकी आराधना करना,,,, इससे ऊपर अन्य कोई सत्ता उसे स्वीकार नहीं। चार अंधों के हाथी दर्शन की भांति, अनेक लोग संघ के बारे में अपनी अपनी व्याख्या देते हैं। संघ इन सबको सिरे से ही खारिज करता है। *वह बाहरी लोगों के उठाए प्रश्नों में अपनी ऊर्जा का दुरूपयोग नहीं करता।* संघ का आग्रह यही रहता है कि उसे समझना है तो उसके घटक बन कर समझिये। कुछ दिन तो गुजारिए संघ में,,,,,। किसी भी सामी, वामी, अब्राहमिक, आयातित, विदेशी विचारों के फैंके शब्दजाल पर संघ का कोई भी *कार्यकर्ता कभी विचलित नहीँ होता।* आप उसके किसी गटनायक, जो मुश्किल से सातवीं कक्षा में पढ़ता होगा, पर , अपना यह भारी भरकम जाल फेंकिये। फेंक कर देखिये,,,, वह इसे कालीन की तरह बिछाकर बड़े आराम से आगे निकल जायेगा,,,, और हां,,, पलट कर मुस्कुराएगा भी😊😊😊😊😊 आप उसकी निश्छल मुस्कुराहट पर अकारण ही तिलमिला रहे हैं। आप को इतना भारी जाल उठाने की तकलीफ नहीं करनी चाहिए थी। आप को संघ समझ नहीँ आ रहा, आपको संघ में अपने प्रश्नों के उत्तर नहीँ मिल रहे,,, *यह समस्या आपकी है, संघ की नहीं।* उसने खुद को समझने का द्वार खुला रखा है, आप उस मार्ग जाने की बजाय अगल बगल के गलत दरवाजे बजा बजा कर आसमान सर पर उठाए जा रहे हैं,,,,, संघ को इससे कोई फर्क नहीँ पड़ेगा। और,,,, अंत में,,,,, संघ कुछ नहीँ करेगा,,,, सिवाय संगठन के। उसका वह संगठित स्वयंसेवक *सबकुछ करेगा जो जो राष्ट्र,समाज और हिंदुत्त्व के हित में है।* यानि,,, आप कुछ कुछ समझ रहे हैं,,,, संघ कुछ नहीं करेगा,,,, *स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ेगा!!* *इत्युपनिषत् ,,, यही वह रहस्य है जो बाहरी लोगों की दुविधा का कारण बना हुआ है।*
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