*उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो* *अब गोविन्द न आयेंगे।* *कब तक आस लगाओगी तुम* *बिके हुए अखबारों से।* *कैसी रक्षा मांग रही हो* *दु:शासन दरवारों से।* *स्वंय जो लज्जाहीन पड़े हैं* *वे क्या लाज बचायेंगे।* *उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो* *अब गोबिन्द न आयेंगे।* *कल तक केवल अंधा राजा* *अब गूंगा बहरा भी है।* *होंठ सिल दिये हैं जनता के* *कानों पर पहरा भी है।* *तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे* *किसको क्या समझायेंगे।* *उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो* *अब गोबिन्द न आयेंगे।* *छोड़ो मेंहदी भुजा संम्भालो* *खुद ही अपना चीर बचा लो।* *द्यूत बिठाये बैठे शकुनि* *मस्तक सब बिक जायेंगे।* *उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो* *अब गोविद न आयेंगे।* *(माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता .. आज उनके शब्द कितने सार्थक दिख रहे है विपक्ष भी पीडितोओ की जात, धर्म देख कर केवल अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए केवल विरोध के लिए विरोध कर रहा है।) शिक्षाविद अशोक चौहान जी के माध्यम से साभार। *


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