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हिंद की चादर गुरु_तेगबहादुर 1675 में औरंगजेब को दिल्ली के तख्त पर कब्जा किए 24-25 वर्ष बीतने को थे। इनमें से पहले 10 वर्ष उसने पिता शाहजहां को कैद में रखने और भाइयों से निपटने में गुजारे थे। औरंगजेब के अत्याचार अपने शिखर पर थे। कश्मीरी पंडितों का एक दल पंडित किरपा राम के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में कीरतपुर साहिब आया और फरियाद की- *हे सच्चे पातशाह, कश्मीर का सूबेदार बादशाह औरंगजेब को खुश करने के लिए हम लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहा है, आप हमारी रक्षा करें।* यह फरियाद सुनकर गुरु जी चिंतित हो उठे। इतने में, मात्र नौ वर्षीय श्री गुरु गोविंद सिंह बाहर से आ गए। अपने पिता को चिंताग्रस्त देखकर उन्होंने कारण पूछा। गुरु पिता ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा कह सुनाई। साथ ही यह भी कहा कि इनकी रक्षा सिर्फ तभी हो सकती है, जब कोई महापुरुष अपना बलिदान करे। *बालक गोविंद राय जी ने उत्तर दिया कि इस महान बलिदान के लिए आपसे बडा महापुरुष कौन हो सकता है? नवम पातशाह ने पंडितों को आश्वासन देकर वापस भेजा कि अगर कोई तुम्हारा धर्म परिवर्तन कराने आए, तो कहना कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करवाओ, फिर हम भी धर्म बदल लेंगे।* नवम पातशाह औरंगजेब से टक्कर लेने को तैयार हो गए। बालक गोविंद राय को गुरुगद्दी सौंपी और औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए। औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार किया और काल-कोठरी में बंद कर दिया। गुरु जी के सामने तीन शर्ते रखी गई- या तो वे धर्म परिवर्तन करें या कोई करामात करके दिखाएं या फिर मरने को तैयार रहें। गुरु जी ने पहली दोनों शर्ते मानने से इंकार कर दिया। गुरु जी इन सबके लिए पहले से ही तैयार थे। *उन्होंने कहा-मैं धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूं और करामात दिखाना ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। नवंबर 24, 1675.दोपहर .. दिल्ली के चांदनी चौंक:लाल किले के सामने .. *मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे, लेकिन वो बिल्कुल शांत बैठे थे।* प्रभु परमात्मा में लीन,लोगो का जमघट, सब की सांसे अटकी हुई, शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी जोर जबरदस्ती के... गुरु जी का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे। *उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी, भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दासको बहुत कष्ट देकर शहीद किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने...* औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था, ....समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगाथा, हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था। खुद चलके आया था औरगजेब लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के काजी के पास, *उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देनेका फतवा निकलता था.. वो मस्जिद आज भी है..* गुरुद्वारा शीश गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास। आखिरकार जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल चुकी थी, और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था। ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिय, हर दिल में रोष था। गुरु जी के एक सिख भाई जैता जी ने गुरु जी के शीश को आनंदपुर साहिब लाने की दिलेरी दिखाई। गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव *रकाबगंज* ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया। आज यहां गुरुद्वारा रकाबगंज, दिल्ली सुशोभित है। *दिल्ली में आज भी गुरुद्वारा शीशगंज नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी की बेमिसाल बलिदान की याद दिलाता है।* कुछ समय बाद गोबिंद सिंह जी ने जालिम को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन की। *गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की, उनका एहसान भारत वर्ष कभी नही भूल सकता।....?
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