ग़ज़ल
बर्फ रिश्ते प' जमी है जो पिघलना तय है।।
वक्त बदलेगा मेरी जान बदलना तय है।।
शाम आई है कभी सुब्ह भी होगी अपनी।
ख्वाब आंखों में शबो-रोज मचलना तय है।।
पेट ऐसे ही अगर बढ़ते रहे शाहों के।
दाम चीजों का मेरे यार उछलना तय है।।
बात ही बात में तुम तंज कसोगे इतना।
अश्क आंखों से इसी तौर निकलना तय है।।
तू बहाने न बना और सितम ढ़ा मुझपे।
ठोकरें मार मुझे देख मेरा संभलना तय है।।
इस तरह सामने मेरे न सनम आओ तुम।
उम्र ऐसी है मेरी जान फिसलना तय है।।
पास तो बैठ मेरे बात तो सुन कुछ मेरी।
अब बदन से ये मेरी जां का निकलना तय है।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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