समाजसेवी डा0 सत्यनारायण की कलम से

 *ये कहाँ जा रहे हम ?*

    --------------------------------


        *पाश्चात्य भौतिकवाद की विलासिता में हम स्वयं को खोते जा रहे हैं।*

              इसकी चकाचौंध में *पति-पत्नी, भाई-बहिन, भाई-भाई, पिता-पुत्र, स्वामी- सेवक जैसे अनेकों आत्मीयता पूर्ण सहज मानवीय सम्बन्ध, सम्बन्ध न रहकर, बोझ व दिखावा बनते जा रहे हैं। जिसका दुष्प्रभाव हमारे समाजिक बिखराव के रूप में हमारे सम्मुख स्पष्ट हो रहा है।*


   मेरी दृष्टि में *इसका एक महत्वपूर्ण कारण हमारा अपने प्राचीन संस्कृत भाषा,साहित्य व ग्रन्थों के प्रति अरुचि का होना तथा पश्चिमी सभ्यता से ओतप्रोत,भाषा व लेखन में अपना अपनत्व प्रकट करना है।*


     हमारा *प्राचीन संस्कृत साहित्य केवल धर्म, अध्यात्म, व दर्शन मात्र का लेखन , संकलन नही है, अपितु आधुनिक विज्ञान की अनेकों शाखाओं का जनक होने के अतिरिक्त अनेको अबूझे प्रश्नों, विज्ञानों का भंडार भी उसमें निहित है।*


     उदाहरण के रूप में वेदोत्तर परम्परा का प्रथम महाकाव्य, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रन्थ   "रामायण" एक ऐसा सामाजिक ग्रन्थ है जिसमें भारतीय ही नही बल्कि वैश्विक अनेको  मानव समाज की अशान्ति, पारिवारिक असामंजस्य, सांस्कृतिक विखण्डन, आर्थिक , राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक  समस्याओं के समाधान इसमें उपस्थित है।*


   यदि हम अपने दैनंदिनी में *कुछ समय प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों के अनुशीलन में दें,मैं पूर्ण विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि एक संवत्सर(वर्ष) में ही हमारे जीवन मे एक नई ऊर्जा, उत्साह, उमंग, उल्लास व उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा।*


आपका शुभेक्षु

*डॉ सत्यनारायण शर्मा*

महामंत्री

सुप्रयास कल्याण समिति (रजि) हरिद्वार


No comments:

Post a Comment

Featured Post

वैश्य कुमार धर्मशाला कनखल में हुआ गणेश महोत्सव का शुभारंभ

हरिद्वार 7 सितंबर भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के जन्मोत्सव पर वैश्यकुमार धर्मशाला कनखल में धर्म रक्षा मिशन द्वारा जनमानस के...