ज्ञान गोष्ठी

 अभ्यास व्यक्ति को पूर्ण बनाता है: डॉ. सत्यनारायण शर्मा

हरिद्वार, 08 फरवरी। सुप्रयास कल्याण समिति रजि. कल्याण के ज्ञान गोष्ठी प्रकल्प के दूसरे सोपान का आयोजन विश्नोई बाड़ा आश्रम भीमगोडा हरिद्वार में नीरज ममगाईं, रमेश रतूड़ी, सचिन मोहन के व्यस्थापन में किया गया। 

सामाजिक संबंधों की हमारे विकास में भूमिका, जीवन मंे लक्ष्य निर्धारण तथा निरन्तर-अभ्यास से सफलता प्राप्ति विषयों पर प्रथम सत्र में श्रीमती विनीता (बिन्दू) बलूनी, श्रीमति कामना गोयल एवं डॉ. सत्यनारायण शर्मा द्वारा उदाहरणों सहित प्रस्तुति की गई। द्वितीय सत्र में कु. शिवांगी ठाकुर द्वारा जीवन की प्रगति के  उपाय, इंग्लिश स्पीकिंग के विशिष्ट पहलुओं पर चर्चा व अभ्यास करवाया, इसी क्रम में सोमित डे द्वारा छात्रों को गणित विषयक सूत्रों को कैसे अपनी कक्षाओं में अपना सकते है से अवगत कराया गया। छात्रों में कु. निशा राणा, कु.रि(ि गम्भीर, कु. दीक्षा दत्ता ने अपने विचारों की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। वंश गम्भीर व हरनारायण कु. रिया सेन, नेहा गुप्ता, ज्योति वर्मा, दर्शिका रतूड़ी, श्वेता, संदीप कुमार व शिवानी शर्मा अपने विचार बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किये।

इस अवसर पर सुप्रयास कल्याण समिति के महामंत्री डॉ. सत्यनारायण शर्मा ने सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि अभ्यास व्यक्ति को पूर्ण बनाता है। अभ्यास एक व्यक्ति के लिए किसी भी चीज को संभव बना सकता है। एक व्यक्ति नियमित अभ्यास द्वारा किसी भी क्षेत्र में निपुण बन सकता है। अभ्यास का अर्थ होता है दोहराना और तब तक दोहराना जब तक कि आप अपनी त्रुटियों को दूर न कर ले और उस प्रक्रिया में सफल न हो जायें, अभ्यास कमियों को नजरंदाज करके कार्य को पूर्णता के साथ पूरा करने में मदद करता है। अभ्यास बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु है, जिसे हमें अपने जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए। यदि इसे अभिभावकों और शिक्षकों की मदद से बचपन में ही विकसित किया जाए, तो यह और भी अच्छा होता है।

इस अवसर पर श्रीमती भगवती रतूड़ी, श्रीमती सुनीता शर्मा, श्रीमती प्रिया दीक्षित शर्मा, श्रीमती संगीता रतूड़ी, श्रीमती रिंकू गुप्ता एवं श्रीमति शालू उपस्थित थी।


No comments:

Post a Comment

Featured Post

दयालबाग शिक्षण संस्थान को मिली होम्योपैथिक कॉलेज के रूप में मान्यता

  दयालबाग शिक्षण संस्थान को  मिली  होम्योपैथी कॉलेज की मान्यता होम्योपैथी का इतिहास और समकालीन महत्व होम्योपैथी का इतिहास 18वीं शताब्दी के अ...