बूढ़े माता-पिता नहीं है अभिशाप

 क्यो हो गए माँ-बाप बच्चों पर बोझ? वृद्धावस्था क्यो बन गई अभिशाप (समाजसेवी लक्ष्मी सिंह पुणे) 

माता-पिता हमारे जन्मदाता, पालक, शुभचिन्तक और मार्गदर्शक है माता-पिता एक ऐसे विशाल वृक्ष की तरह होते है जिससकी छाया में पूरा परिवार फलता-फूलता है। माता-पिता जीवन के हर मोड पर दुःख तकलीफो से लडने के लिए हिम्मत और जीवन में आगे बढ़ने के लिए आशीर्वाद और संसाधन जुटाकर हमे ताकत देते है जब बच्चा डरता घबराता हुआ जीवन की दौड़ में शामिल होता है तब माता-पिता साथ देते है और हौले से कान में चिंता न करना मै हूँ न कह कर आत्म विश्वास और साहस भर देते है। इस सबके बावजूद यह एक विडम्बना है कि वृद्धावस्था में हम अपने जन्मदाता माता-पिता से मुँह मोड लेते हैं और उन्हें बोझ समझ कर उन्हें वृद्धाश्रमो में एकांकी जीवन जीने के लिए बेसहारा छोड़ देते है या गाँव में दूसरो के सहारे छोड़ देते है। वँहा गाँव में न तो समुचित चिकित्सा की व्यवस्था होती हैं और न कोई ध्यान देने वाला ही होता है उन्हें वँहा भाग्य के भरोसे छोड़ देना कँहा तक उचित है। जँहा बचपन में हमे माता-पिता से जरा सी भी दूरी बर्दाश्त नहीं होती थी बिना लौरी, कहानी सुने नींद नहीं आती थी वही बडे होने पर हमे अपने माता-पिता की नसीहते और बाते अच्छी क्यो नहीं लगती जबकि वे हमारे हित की ही बातें कहते हैं । जिन हाथो ने हमारी उँगली पढकर चलना सिखाया, हमे गिरते हुए संभाला उन्हें कैसे हाथ पकड कर हम वृद्धाश्रमो में हम छोड़ सकते है। ऐसा करते हुए हम क्यो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ नहीं सुनते जबकि कल हमे भी बूढा होना है और हमारे बच्चे जो ये सब होता देख रहे हैं उन्होने ने भी कल हमारे साथ ऐसा ही किया तो क्या होगा ? कब सोचा है ऐसा अन्याय करते हुए अपने माता-पिता के साथ। जब बच्चों की उपेक्षा से आहत हो कर बूढ़े माता-पिता रोते है तब ईश्वर भी कहीं किसी कोने में खडा हो कर हमारे कुकृत्यो को देख रहा होता है और समय आने पर हमे हमारी करनी का फल भोगना पड़ता है। बडे बजुर्गो का परिवार में होना ज़रूरी है उनके रहते घर में संस्कार सुरक्षित रहते हैं। बच्चों को सामाजिक सुरक्षा मिलती है और हमे परिवार के सुरक्षित रहने का विश्वास रहता है सामाजिक और पारिवारिक रिश्तो की डोर बँधी रहती हैं। इस कारण पाश्चात्य देशों की नकल में अपनी अकल खराब न करो माता-पिता की ठंडी छावँ सदा बनी रहे उनका मान सम्मान कायम रहे यह प्रयास रहना चाहिए। बूढा पेड भले ही फल न दे छाया तो देता है। दुनिया में स्वर्ग माता-पिता के चरणों में है जो एक बार चले गए तो फिर नहीं मिलेगे -जय गुरुदेव -




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