कवित्री सोमा नायर जी की लेखनी से 'माफी नामा '

 दिल से 


माफ़ीनामा 

 

पंक्तिबद्ध भूख और लाचारी की 

तस्वीर का वह अगला पात्र था

सिकुड़ते फैलते फैलते सिकुड़ते हाथों में

मैंने राशन का पैकेट और कंबल रखा


जब तक तस्वीर न खिंच जाये उसे खड़े रहना था

घर में बच्चे भूखे थे उसे योद्धा की तरह अड़े रहना था

फ़ोटोग्राफ़र मित्र चेहरा थोड़ा ऊपर

आँखें थोड़ी सामने करा रहा था

ठीक है -उस ने मुझे इशारा किया

फ़ोटो खिंच चुकी थी

मैंने पैकेट छोड़ दिया


अचानक उस के काँपते हाथों से पैकेट गिर गया

दाल चावल चीनी जमीन पर बिखर गये

उस ने कातर आँखों से मेरी ओर देखा

मैं तब तक अगले सुपात्र की तरफ़ बढ़ चुका था


न जाने क्यों मेरी पीठ पर चिपक गई उस की आँखें

बेबस

निरीह

आत्म सम्मान के लिये प्यासी 

ऐसी कितनी ही तस्वीरों पर मैंने वाहवाही लूटी है

फ़ेसबुक के लाईन गिने हैं


अब मुझे समझ नहीं आ रहा था

किस के हाथ ऊपर है

किस के नीचे

कौन दान दे रहा है

कौन ले रहा है

मेरा सिर लज्जा से झुक रहा है


जो दे रहा है

वह तो मौन है

न कह रहा है

न जता रहा है


मुझे मेरा बौनापन नज़र आ रहा है

उस में और मुझ में बस इतना ही तो अंतर है

कि गल्ति से मेरे पास उस से कुछ ज़्यादा है

वक़्त का पहिया घूमते कहाँ देर लगती है


मैं अब कोई बेबसी की तस्वीरें नहीं लूँगा

किसी को ख़ुद्दारी का सौदा करने पर मजबूर नहीं करूँगा


जो पहले ले ली है उन के लिये अपने ह्रदय पर

माफ़ीनामा लिखूँगा


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