संध्या नायर की लेखनी से -दिल के जज्बात




झूठे वादे तमाम करते हैं 

'शाम' उनके ही नाम करते हैं


पीठ अपनी भी थपथपायेंगे

हम भी झुक कर सलाम करते हैं


सामने से दगा नहीं देते

वो मेरा  एहतिराम करते हैं


भीगने का मज़ा नहीं लेते

हाय तौबा, ज़ुकाम करते हैं


ये ज़रूरी नहीं कि सच्चे हों

वो जो अच्छा कलाम करते हैं


नाम अब तक नहीं हुआ बेशक

हम भी अच्छा ही काम करते हैं


बुतकदे में बजे या मिंबर पर

नींद दोनो हराम करते हैं


और कहने को कुछ नहीं बाकी

आज बस राम राम करते हैं


संध्या नायर, मेलबर्न

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