लंग्स डे भी मनाएगें (डा0 जयदीप सिंह बिष्ट)

 दिल की बातें करते रहे सभी

 फेंफड़े का कुछ बताया ही नहीं, 

फेंफड़ा भी स्वाभिमानी निकला

 गुस्सा था, पर जताया ही नहीं।


इतना नाराज थे ऐ दोस्त!

तो कम से कम जताया तो होता

दिल की जगह तुम भी ले सकते थे 

बस एक बार बताया तो होता। 


दिल का क्या है वो तो टूटता है

 फिर जुड़ जाया करता है,

ऐ फेंफड़े! तू गर नाराज़ हो तो

 मौत की तरफ मुड़ जाया करता है।


ऐसा पता होता तो तुझे 

अलग ही सम्मान दिलाया होता, 

अपनी महबूबा को दिल से नहीं,

 तुझसे मिलाया होता।


रिश्ते सारे तूने लीले 

जो दोस्त, सगे और अपने थे

बंद किया उन सब आंखों को

 जिनमें लाखों सपने थे।


खैर अब बता करना क्या है

और क्या नहीं करना है,

जिंदा रहने दे इस जहां में 

हमको अभी नहीं मरना है।


अब बंद करो ये बरबादी 

और मानस जन को माफ करो

लोगों की सांसें लौटा दो 

और अपना मन भी साफ करो


तेरी फितरत पहचान गए 

सम्मान तेरा लौटाएंगे

"लंग्स डे" भी होगा भारत में अब

 तुझपर भी अभियान चलाएंगे।


  🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻😷


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