जब भी भारतीय राजनीति में पायलट की बात आती है तो हमारा ध्यान स्वर्गीय राजीव गांधी की ओर जाता है परंतु आज मैं इस लेख के माध्यम से भारतीय राजनीत के असली पायलट बीजू पटनायक के बारे में चर्चा कर रहा हूं जिन का योगदान अतुलनीय रहा भारत समेत पूरी दुनिया के लिए!
*बीजू पटनायक भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिनके निधन पर उनके पार्थिव शरीर को 3 देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा गया था भारत,रूस और इंडोनेशिया।*
बीजू पटनायक पायलट थे और जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ संकट में गिर गया था तब उन्होंने लड़ाकू विमान डकोटा उड़ा कर हिटलर की सेनाओं पर काफी बमबारी की थी जिससे *हिटलर पीछे हटने को मजबूर हो गया था*।
उनकी इस बहादुरी पर उन्हें *सोवियत संघ का सर्वोच्च पुरस्कार भी दिया गया था और उन्हें सोवियत संघ ने अपनी नागरिकता प्रदान की थी*।
बीजू पटनायक ने बतौर पायलट भारत के साथ ही कई देशों में साहसी अभियानों को अंजाम दिया था.
*बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ज्ञानवती ने जर्काता के पास एक साहसिक मिशनको अंजाम दीया, वह इंडोनेशिया के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुल्तान शहरयार और डॉ. सुकर्णो को डच सेना से बचा कर दिल्ली आ गए. बाद डॉ. सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने. इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई*.
उन्हें इंडोनेशिया के *सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से नवाजा गया* आजादी की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर उन्हें *सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार 'बिनतांग जासू उतमा*' से सम्मानित किया गया.
जिस समय बीजू पटनायक और उनकी पत्नि ने ये साहसिक कार्य किया उनके पूत्र नवीन पटनायक मात्र एक माह के थे
पटनायक ने 1940 के दशक की शुरुआत में रॉयल इंडियन एयर फोर्स में पायलट रहते हुए म्यांमार समेत कई युद्धग्रस्त क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दी थीं. म्यांमार से वह ब्रिटिश सैनिकों को बचाकर लाए थे.
वायुसेना की नौकरी के बाद बीजू पटनायक ने *भारत की सबसे पहली एयरलाइन कंपनियों में एक कलिंगा एयरलाइं शुरू की*
कलिंगा एयरलाइंस मुनाफे ने साथ चल रही थी. इसी बीच, 1953 में भारत सरकार ने बीजू पटनायक से कलिंगा एयरलाइंस खरीदकर उसे इंडियन एयरलाइंस बना दिया. बीजू पटनायक ने अपनी मौत को लेकर एक बार कहा था, *किसी लंबी बीमारी के बजाय मैं विमान दुर्घटना में मरना चाहूंगा. नहीं तो फिर ऐसा हो कि मैं तुरंत ही मर जाऊं. मैं गिरूं और मर जाऊं*.'
बीजू पटनायक ने 1975 के आपातकाल का विरोध किया. अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी जेल में बंद रहना पड़ा. जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो बीजू को केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया. बीजू पटनायक की मृत्यु 17अप्रैल1997 को हृदय गति रुकने से हुवी!
*दुखद पहलू ये के इतने साहसी व्यक्त की चर्चा हमारे देश और राजनीति में नहीं होती हमे तो भारत रत्न राजीव गांधी को ही असली पायलट पढाया और बताया जाता है ।
*महेंद्र शुक्ल की पोस्ट से साभार
No comments:
Post a Comment