ग़ज़ल
दिल का पुर्जा पुर्जा पढ़ना।
सहरा को अब दरिया पढ़ना।।
दुनिया का जब नक्शा पढ़ना।
अपना-अपना किस्सा पढ़ना।।
खा सकता है धोका इक दिन।
सोच समझकर चहरा पढ़ना।।
मत लिखना अब हिंदू मुस्लिम।
बंदे को सब बंदा पढ़ना।।
दर्द मेरा गायब हो जिससे।
ऐसा कोई नुस्खा पढ़ना।।
कितना मुश्किल होता है जी।
चांद सरीखा चहरा पढ़ना।।
मंजिल खुद चलकर आएगी।
तुम रस्ते को रस्ता पढ़ना।।
हमने तो बस प्यार लिखा है।
तुम चाहो अब जैसा पढ़ना।।
खुद को समझें सब तुर्रम खां।
कैसा लिखना कैसा पढ़ना।।
लड़की को मत लड़की समझो।
उसको 'दर्द' फरीदा पढ़ना।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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