परमार्थ निकेतन में रज्जू भैया को किया नमन



🕉️ *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक एवं समाज सुधारक प्रोफेसर श्री राजेन्द्र सिंह जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि*


ऋषिकेश, 14 जुलाई (अमरेश दूबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश)    परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक एवं समाज सुधाकर प्रोफेसर श्री राजेन्द्र सिंह जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि संघ परिवार के प्रत्येेक सदस्य में ‘‘इदम् राष्ट्राय स्वाहाः इदं न मम’’ के संस्कार निहित है। गुरुजी का मंत्र ‘इदम् राष्ट्राय’ संघ परिवार का मूल मंत्र है। अद्भुत समर्पित लोगों की संस्था है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। संघ परिवार मानवता की संस्कृति, विश्व मंगल की संस्कृति और सर्वेभूतहिते रताः की संस्कृति के सिंद्धान्तों का अनुसरण करते हुये निष्ठा के साथ आगे बढ़ता रहा है, क्योंकि इसके पीछे माननीय रज्जू भैय्या जी जैसे निष्ठावान और समर्पित महानुभावों की निष्ठा समाहित हैैै।


  परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में ब्रह्माकुमारी सेंटर माउंट आबू से आये बहिनों के एक विशेष ग्रुप ने यहां रहकर साधना का आनन्द लिया। माँ गंगा की दिव्य आरती और विश्व शान्ति हवन में सहभाग किया और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ परमार्थ निकेतन से विदा ली।

सभी को सम्बोधित करते हुये पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपनी माउंट आबू यात्रा और दादी जानकी जी के साथ बिताये अनमोल क्षणों को याद करते हुये कहा कि ’’ ब्रह्माकुमारी विश्व विद्यालय के द्वारा पूरे विश्व में कई ‘शान्ति के दूत’ तैयार हुये हैं, जो दूसरों को भी शान्ति का मार्ग दिखा रहे हैं।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि सकारात्मक और शान्ति से युक्त जीवन जीने के लिये थ्री एच ‘‘हैल्थ, हैप्पीनैस और होलीनेस’’ का संगम बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में युवा ही नहीं बल्कि बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे हैं इसका असर सीधे-सीधे उनके स्वास्थ्य और सोच दोनों पर पड़ रहा है, ऐसे में उन्हें सकारात्मकता की ओर बढ़ने के लिये मार्गदर्शन की जरूरत है। युवाशक्ति रेल के इंजन के समान है, जिनके हाथों में पूरे राष्ट्र की प्रगति की डोर होती है। मेरा मानना है बागड़ोर ऐसे हाथों में हो, जो पूरे राष्ट्र को सकारात्मक दिशा की ओर ले जा सके इसलिये युवाओं को आध्यात्मिकता और मेडिटेशन से जोड़ना बहुत जरूरी है।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि शान्ति का समावेश जीवन में तभी होता है, जब जीवन में ध्यान का समावेश होता है। जीवन में प्रेम, करूणा, उदारता, धैर्य और क्षमा, ध्यान के माध्यम से ही आते हैं परन्तु ध्यान, करने की नहीं जीने की विधा है। हमारे दो चित्त होते है एक चित्त जो बाहरी दुनिया को देखता है और उस में खो जाता है। दूसरा चित्त जो शांत होता है स्वयं का निरीक्षण करता है। स्वयं का निरीक्षण करना ही महत्वपूर्ण कदम; पाॅवरफुल स्टेप है।

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