'काव्य स्पन्दन 2' पुस्तक से संकलित
जब से हुई मोहब्बत खुद से
जब से हुई मोहब्बत खुद से,
जीना मुझे आ गया,
ताने-बाने सारे पुराने ,
जिंदगी जीना मुझे आ गया,
जीती थी औरों के लिए ,
अब खुद के लिए जीना आ गया,
मुस्कुराना बोझ था पहले,
अब खिलखिलाना आ गया,
जब से हुई मोहब्बत खुद से,
खुद को तराशना आ गया,
रिश्तों को संभालते- संभालते,
खुद को संभालना आ गया,
लाख कोशिशें सारी मिन्नतें,
पानी बनकर बह जाते थे,
नींद से जागी अब मैं तो,
अब तो जागना आ गया,
जब से हुई मोहब्बत खुद से,
खुद से जीना मुझे आ गया,
ताश के पत्तों सी थी जिंदगी मेरी,
अब खुद को समेटना आ गया,
बिखरे हुए मोती को चुन कर,
माला पिरोना आ गया,
गम के पत्थर को पिघलाकर ,
धुएं में उड़ाना आ गया,
लक्ष्यविहीन थी जिंदगी मेरी,
मंजिल को तलाशना आ गया,
जीवन किसको कहते हैं,
अब समझ में आ गया,
खुद को खुद के लिए,
अब तो जीना आ गया.........।।
- पूनम सिंह (साभार)
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