राष्ट्र कवि गोपाल दास नीरज जी की पुण्यतिथि पर नमन

 प्रिय नीरज प्रशंसकों, आज आप सभी के लिए प्रस्तुत है 

आपके प्रिय नीरज जी की एक भावपूर्ण रचना,उनकी तृतीय पुण्यतिथि पर  ४जनवरी,१९२५ ,१९जुलाई २०१८,🙏




'आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ'  ---  डॉ. गोपालदास 'नीरज'


आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ

कौन जाने यह दिया सुबह तक जले न जले ?

बम्ब बारुद के इस दौर में मालूम नहीं 

ऐसी रंगीन हवा फिर कभी चले न चले।


ज़िन्दगी सिर्फ है खूराक टैंक तोपों की 

और इन्सान है एक कारतूस गोली का 

सभ्यता घूमती लाशों की इक नुमाइश है

और है रंग नया खून नयी होली का।


कौन जाने कि तेरी नर्गिसी आँखों में कल

स्वप्न सोये कि किसी स्वप्न का मरण सोये 

और शैतान तेरे रेशमी आँचल से लिपट

चाँद रोये कि किसी चाँद का कफ़न रोये।


कुछ नहीं ठीक है कल मौत की इस घाटी में

किस समय किसके सबेरे की शाम हो जाये

डोली तू द्वार सितारों के सजाये ही रहे

और ये बारात अँधेरे में कहीं खो जाये।


मुफलिसी भूख गरीबी से दबे देश का दुख 

डर है कल मुझको कहीं खुद से न बागी कर दे

जुल्म की छाँह में दम तोड़ती साँसों का लहू 

स्वर में मेरे न कहीं आग अँगारे भर दे। 


चूड़ियाँ टूटी हुई नंगी सड़क की शायद

कल तेरे वास्ते कँगन न मुझे लाने दें

झुलसे बागों का धुआँ खाये हुए पात कुसुम

गोरे हाथों में न मेंहदी का रंग आने दें। 


यह भी मुमकिन है कि कल उजड़े हुए गाँव गली

मुझको फुरसत ही न दें तेरे निकट आने की

तेरी मदहोश नजर की शराब पीने की।

और उलझी हुई अलकें तेरी सुलझाने की।


फिर अगर सूने पेड़ द्वार सिसकते आँगन 

क्या करूँगा जो मेरे फ़र्ज को ललकार उठे ?

जाना होगा ही अगर अपने सफर से थककर 

मेरी हमराह मेरे गीत को पुकार उठे। 


इसलिए आज तुझे आखिरी खत और लिख दूँ

आज मैं आग के दरिया में उत्तर जाऊँगा

गोरी-गोरी सी तेरी सन्दली बाँहों की कसम 

लौट आया तो तुझे चाँद नया लाऊँगा।


--- डॉ. गोपालदास 'नीरज' 

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