विश्व की प्रथम इलेक्ट्रिक डबल डेकर
मालगाड़ी....
भारत छोड़ते समय अंग्रेज उनकी बनायी रेल-व्यवस्था जैसी छोड़ गये थे, उसमें स्वतन्त्रता के बाद ६५ वर्षों तक नेहरू-गांधी परिवार की काँग्रेसी सरकारों ने नाममात्र सुधार ही किये, यहाँ तक कि द्वितीय श्रेणी के बैठ कर यात्रा वाले तथा शयनयानों की सीटों के लकड़ी के पटरों पर गद्दे भी जनता पार्टी के कार्यकाल में रेलमन्त्री मधू दण्डवते ने लगवाये थे...!
अभी पिछले डेढ़ वर्ष में कोविड के कारण अधिकांश रेलगाड़ियों का आवागमन बन्द था और देशभर के अधिकांश रेलमार्ग खाली थे, इस बात का लाभ लेकर रेलमन्त्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में रेल मन्त्रालय ने बीसियों हजार किमी लम्बी पटरियों को मजबूत कर रेलमार्गों का नूतनीकरण किया... अब भारत के सभी रेलमार्गों का विद्युतीकरण पूरा हो चुका है और देश के अधिकांश रेलमार्ग १६० किमी प्रति घण्टा से अधिक तीव्र गति से अधिक भार की गाड़ियों को ले जाने में सक्षम हैं....!
अब तो मधेपुरा (बिहार) के लोकोशेड में बना विद्युच्चालित १२ हज़ार अश्वशक्ति (हॉर्सपावर) का अति शक्तिशाली इंजिन अत्यधिक भार से लदी मालगाड़ीयों को खींच कर ले जा रहा है और भार भी कैसा... तो एक वॅगन के चॅसिस पर एक के ऊपर एक ऐसे दो कंटेनर (लगभग १४० टन भार) रख कर ऐसी ९० वॅगन की १.५ किमी लम्बी मालगाड़ी पूरी गति से जाती देखना भी रोमांचकारी दृश्य है...!
यह है आज का बदला हुआ भारत..!
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