ग़ज़ल
मेरा नाम लिखकर मिटाने लगे हैं।
मुझे इस तरह भी सताने लगे हैं।।
कसम झूठ मेरी वो खाने लगे हैं।
मेरा दिल वो यूं भी दुखाने लगे हैं।।
जफा पर जफाएं जो करते रहे हैं।
मुझे याद वादे दिलाने लगे हैं।।
वही जो मुझे दे रहे थे दुआएं।
वही जख्म फिर से दुखाने लगे हैं।।
वही चोट फिर से उभरने लगी है।
मजे जीस्त के अब तो आने लगे हैं।।
दुहाई दुहाई मेरे दिल दुहाई।
मुझे 'दर्द' फिर आजमाने लगे हैं।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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