स्वामी चिदानंद मुनि ने खेल दिवस पर मेजर ध्यानचंद को किया नमन





💥 *खेल भावना ही सेवा भावना है-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*

*ऋषिकेश, 29 अगस्त ( अमरेश दुबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश)* देश के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित ‘मेजर ध्यानचंद जी के जन्म दिवस पर उन्हें याद करते हुये परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ‘द विजार्ड’ के नाम से मशहूर हमारे मेजर ध्यानचंद जी ने युवाओं को हॉकी खेलने के लिये प्रेरित किया। फील्ड हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1926 से 1949 तक अंतर्राष्ट्रीय हॉकी खेली और अपने कॅरियर में 400 से अधिक गोल किये। इलाहाबाद में जन्में ध्यानचंद उस ओलंपिक टीम का हिस्सा थे, जिसने वर्ष 1928, 1932 और 1936 में स्वर्ण पदक जीते इस हॉकी के हीरो को भावभीनी श्रद्धाजंलि।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज आज मेजर ध्यानचंद जी के जन्मदिवस पर भारत के युवाओं का आहृवान करते हुये कहा कि ’भारत की युवा शक्ति अपनी शिक्षा के साथ खेल में भी विशेष ध्यान दे। अपने लक्ष्य को निर्धारित करें और अपने अवकाश को भी सेवा कार्यों में लगायें तथा राष्ट्र और समाज के उत्थान में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान प्रदान करें। 
स्वामी जी ने कहा कि जीवन मूल्यों के साथ अपने कर्तव्यों को पूरा करें और लक्ष्यों को निर्धारित करते रहे। जीवन मेेें देशसेवा को स्थान दें तथा अपनी शक्तियों को सकारात्मक दिशा में लगाये। युवा खेल में योगदान दे; हम विकास करे पर अपनी जड़ों से भी जुुड़ें रहे क्योंकि जड़ों से खोखला हुआ वृक्ष ज्यादा दिनों तक हरा-भरा नहीं रह सकता उसी प्रकार जड़ों से; संस्कृति से; संस्कारों से अलग होकर हमारे राष्ट्र का युवा भी उस गौरव को प्राप्त नहीं कर सकता जिसका वास्तव में वह अधिकारी 
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि युवाओं को अपने जीवन में हर क्षेत्र को विकसित करना होगा। अपने जीवन के विभिन्न पहलूओं पर ध्यान देने के साथ दूसरों के दुखों को दुर करने पर भी ध्यान देना जरूरी है। सेवा के लिये तो बस हृदय में भाव होने चाहिये जिस दिन ये भाव जाग्रत हो जाते है तब न कोई अपना होता है न पराया, तब तो बस सेवा ही हमारा धर्म और सेवा ही हमारी साधना होती है और यही हमें खेल सिखाता है, यही खेल भावना भी है।

ज्ञात हो कि हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की जयंती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजेलस) और 1936 (बर्लिन) में लगातार तीन ओलंपिक खेलों में भारत भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। उन्हें 1956 में पद्मभूषण से समानित किया गया था।

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