श्री भगवान दास संस्कृत महाविद्यालय में योग विषय की मान्यता हुई रद्द


 ‘श्रीभगवानदास संस्कृत महाविद्यालय की योग विषयक अवैधानिक मान्यता हुई निरस्त’

 हरिद्वार 4 अगस्त (रजत अरोड़ा संवाददाता गोविंद कृपा ज्वालापुर) 


  प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम के महन्त तथा प्रबन्धक महामण्डलेश्वर स्वामी रूपेन्द्र प्रकाश जी महाराज ने 23 जून 2020 को कुलसचिव उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर सूचना दी थी कि श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार के तत्कालीन प्राचार्य भोला झा तथा डा0 महावीर अग्रवाल के द्वारा बिना किसी अधिकार के नियमविरुद्ध तरीके से विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एवं अन्य अधिकारियों से साँठ-गाँठ करके योग, ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र विषयों में पी-जी. डिप्लोमा और योगाचार्य की मान्यता प्राप्त कर ली है, जबकि महाविद्यालय के प्राचार्य को स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम की मान्यता प्राप्त करने का अधिकार ही नहीं, जब तक कि प्रबन्ध समिति नियमानुसार प्रबन्ध कार्यकारिणी में उक्त विषयक प्रस्ताव पारित न करा ले। 

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, बहादराबाद हरिद्वार ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय, हरिद्वार को दी हुई कागजों में हेरफेर करके योग विषयक अवैधानिक मान्यता को  दिनांक 31.07.2021 के मद संख्या-03 पर गहन विचार विमर्शोपरान्त निरस्त कर दिया। माननीय विद्यापरिषद् ने पूर्व में 21वीं बैठक दिनांक 25 जनवरी 2021 के मद संख्या-6 के विनिश्चयानुसार दिये गये निर्देशों के क्रम में गठित तथ्यखोजी समिति के सुझावों पर विस्तृत विचार विमर्श कर निर्णय लिया कि पी.जी.डी. योग एवं योगाचार्य पाठ्यक्रम के सन्दर्भ में भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार में योगाचार्य के द्वितीय वर्ष के छात्रों का अध्ययन निर्बाध चलते रहने की संस्तुति के साथ ही वर्तमान संस्थागत विवाद तथा अन्य मांगे गये स्पष्टीकरण प्राप्त होने तक नवीन छात्रों के प्रवेश को स्थगित कर कर दिया जाये। जिसका सीधा अर्थ है कि योगाचार्य व पीजीडी योग के नवीन छात्रों के प्रवेश को स्थगित रखने की संस्तुति कर दी गयी, ऐसा निर्णय लिया गया है। माननीय विद्यापरिषद् ने तथ्यखोजी समिति को वाञ्छित अभिलेख विश्वविद्यालय द्वारा यथाशीघ्र उपलब्ध कराये जाने का निर्देश देते हुए यह भी आग्रह किया गया है कि यह समिति दो माह के अन्दर अपनी अन्तिम आख्या उपलब्ध करा दे, जिससे पुनः विद्या परिषद् की बैठक में विचार-विमर्श हेतु प्रस्तुत किया जाये। इसे अन्तिम मुहर लगाने के लिये मा. कार्यपरिषद् की बैठक में प्रस्तुत किया जायेगा। उक्त के आलोक में श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2021-22 में प्रथम वर्ष योगाचार्य तथा पी.जी. डिप्लोमा योग में नवीन छात्रों के प्रवेश पर अग्रिम आदेशों तक स्थगित कर दिया गया है। मातृसंस्था आगे भी गठित तथ्य खोजी समिति को जो भी सहयोग या पत्र प्रपत्र उपलब्ध करायेगी, जिससे यह नियम विरुद्ध चलने वाले पाठ्यक्रम पर पूर्ण निर्णय हो सके। इस पाठ्यक्रम को खोलने की इन लोगों की मन्शा भी जगजाहिर हो सके।  

महन्त प्रबन्धक रूपेन्द्र प्रकाश जी का यह भी कथन है कि उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा वर्तमान में एक बडे सन्त के यहाँ प्रतिकुलपति का कार्य करने वाले डा0 महावीर अग्रवाल, पूर्व प्राचार्य भोला झा, डा0 शैलेश तिवारी, विनय बगई, अजय चोपडा आदि ने मिलकर महाविद्यालय की मातृसंस्था में धोखाधड़ी कर अवैधानिक रूप से  मातृसंस्था को चिट फण्ड सोसायटी हरिद्वार में अपने नाम पञ्जीकृत करा लिया है। जिसके कारण उक्त लोगों के विरुद्ध थाना कोतवाली में एक मुकद्दमा अपराध संख्या 270 सन् 2019 अभियुक्तों के विरुद्ध अन्तर्गत धारा 419, 420, 465, 467, 468, 471, एवं 120 बी, भारतीय दण्ड संहिता के तहत कोतवाली ज्वालापुर जिला हरिद्वार में दिनांक 14.06.2019 को दर्ज हो गया है। इसी कारण से एक आरोपी कार्यवाहक प्राचार्य निरञ्जन मिश्र 22.07.2021 से जेल में बन्द है तथा हरिद्वार के युवा साधुसन्तों के द्वारा अन्य आरोपियों को पकडने की मांग जोर पर है। महामण्डलेश्वर जी ने बताया कि जिस महाविद्यालय की स्थापना हमारे गुरुजनों ने भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म आदि के प्रचार और प्रचार के लिये की थी, उपरोक्त आरोपियों ने कूटरचना करते हुए अवैधानिक रूप से धन कमाने के उद्देश्य से बिना किसी नियम के स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम चालू कर दिये गये, जिसके आय-व्यय का कोई हिसाब ही नहीं है। इस आय-व्यय की भी गहन जाणच होनी आवश्यक है, ताकि समाज को इनके अन्य काले कारनामें भी उजागर हो सके। शीघ्र ही उपरोक्त आरोपियों के साथ अन्य कुछ आरोपियों पर भी प्राथमिकी दर्ज होगी, जिससे समाज के सामने तथाकथित विद्वानों की करतूत सामने आयेगी। साथ ही महन्त जी ने यह भी संकेत किया महाविद्यालय में योग विषय को पढाने के लिये उन शिक्षकों को नियुक्त किया हुया है, जो यूजीसी के नियमानुसार शैक्षणिक योग्यता को पूर्ण ही नहीं करते हैं। यह छात्रों के साथ अन्याय तथा उनका भविष्य अन्धकार में धकेलने का कार्य है। इन सब विषयों की जाँच यथाशीघ्र की जानी आवश्यक है।

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