ग़ज़ल
ख्वाब में इक परी हुआ करती थी।
जिंदगी जिंदगी हुआ करती थी।।
किस कदर रोशनी हुआ करती थी।
शाम वो सुरमई हुआ करती थी।।
नींद में याद जब कभी आते थे।
ख्वाब में गुदगुदी हुआ करती थी।।
छांव से बेखबर रहा करते थे।
धूप कब धूप सी हुआ करती थी।।
जान इक दूजे पर छिड़कते थे हम।
इस कदर दोस्ती हुआ करती थी।।
मीर गालिब कबीर फानी थे जब।
शायरी शायरी हुआ करती थी।।
एक ही फोन एक ही लाइन थी।
और वो भी बिजी हुआ करती थी।
झूठ को झूठ बोलने का दम था।
सच की ही पैरवी हुआ करती थी।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
No comments:
Post a Comment