काव्य धारा (विजय उपाध्याय)

 मित्र ही तो है जो सब दुःख दर्द को कम खुशियां चौगुनी कर देते है, जरूरत जब भी पड़ती है अपनी सांसे तक जोड़ देते है,

सुदामा कृष्ण की मित्रता विश्व मे  महान नही होती, तो अधर्म के लिये कर्ण के तरकस से बाणों की सन्धान नही होती,

मित्रता का वचन था श्रीराम  प्रभु ने बाण चलाया,

अनुज बधू भगनी सुत नारी कन्या का पाठ पढ़ाया,

मित्र है जो मित्र के लिए अपनी जान तक लगा देता है,

न कोई संविदा न करार बस ह्रदय में विश्वास होता है

 अधिकार कम पर असीमित दायित्वों का पहाड़ होता है,

आज मित्रों के उपकारों को याद किया, तो पता चला मेरी हर कष्ट संघर्ष में मित्रों का साथ मिला, बस यूं कह लो मित्रों के कारण ही यह सुखदपूर्ण जीवन विजय-रथ चला,

इसीलिए तो मित्र की कोई उपमा नही होती, मित्रता की व्यख्या बखान नही होती।।

सभी मित्रों को समर्पित

-विjयोति...


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