अफ़ग़ानिस्तान Rescue Mission - भारतीय सरकार और सेना का आपरेशन एक "देवी शक्ति"
अफ़ग़ानिस्तान में समय जा चक्र घूमा और वही हुआ जो होने का अंदेशा था। तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया, और उसके बाद हर देश अपने नागरिकों और महत्त्वपूर्ण assets को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने का प्रयास कर रहा है।
पिछले कुछ दिनों से हम देख रहे हैं कि भारतीय वायुसेना के विमान अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को काबुल से लेकर आ रहे हैं, जबकि ये भी सुनने में और देखने मे आ रहा है कि कैसे काबुल एयरपोर्ट और आस पास के इलाके पर तालिबान के लोग फायरिंग कर रहे हैं, जिसमे काफी लोग मारे भी जा चुके हैं।
ऐसे में ये रेस्क्यू मिशन बहुत ही critical हो जाता है, बेशक देखने और सुनने में यह काफी आसान लगता है लेकिन इसके पीछे भारतीय सरकार और सभी सशस्त्र सेना दलों की कितनी मेहनत और कितनी कूटनीति है, ये इस पोस्ट में आपको बताने की कोशिश करूंगा।
सबसे पहली बात यह कि अफगानिस्तान जाने के लिये हमारे पास कोई सीधा प्लेन रुट नही है, कोई सीधा सड़क वाला रास्ता भी नही है। अगर सबसे छोटे रास्ते के बारे ने बात करें, तो वह पाकिस्तान से होकर जाता है, लेकिन वो किसी भी स्थिति में हमे रास्ता नही देगा, और अगर दे भी दे, तो वहां से होकर हमारे सिविल और सैन्य aircrafts का जाना खतरे से खाली नही।
यही वजह है कि भारतीय विमानों को लंबा रुट लेकर ईरान से होकर जाना पड़ता है.....लेकिन वो भी इतना आसान नही.....इसके लिये भारत सरकार ने सबसे पहले ईरान से भारतीय वायुसेना के विमानों के लिये एयर स्पेस के इस्तेमाल की मंजूरी हासिल की। यह मंजूरी हासिल करना इतना आसान काम नहीं था क्योंकि कोई भी देश दूसरे देश की वायुसेना को अपने एयर स्पेस के इस्तेमाल की अनुमति नही देता है। लेकिन ईरान से भारत सरकार यह अनुमति हासिल करने में सफल रही ।
लेकिन अभी भी एक समस्या थी, कि भारतीय प्लेन सीधे काबुल नहीं उतर सकते थे। क्योंकि काबुल पर तालिबान का कब्जा है, और उसके साथ भारत के सम्बंध कभी अच्छे नहीं रहे हैं। इसलिये भारत सरकार तालिबान पर इतना भरोसा नहीं कर सकती......वायुसेना या एयर इंडिया के प्लेन को वहाँ ज्यादा देर तक खड़ा रख सकता, क्योंकि काबुल एयर पोर्ट में में इस समय अफरा-तफरी मची हुई है, तालिबान के लड़ाके फायरिंग कर रहे हैं, ऐसे में वहां से लोगो को निकालना खतरे से खाली नही.....ऐसे में भारत कैसे ये आपरेशन कर पा रहा है??
इसके हल के लिये भारत सरकार ने एक और रास्ता निकाला, इसके लिये कजाकिस्तान के एयरपोर्ट का सहारा लिया......विदेश मंत्री और PMO ने कजाख सरकार से coordinate किया भारतीय वायुसेना के प्लेन को कजाकिस्तान एयरपोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति मिल गयी। यही काम अन्य कई देशो के साथ भी किया गया, जिनमे क़तर और कुछ यूरोपियन देश भी हैं, जहाँ भारतीयों को भेजा जा रहा है, और फिर एयर इंडिया के हवाई जहाजों से भारत लाया जा रहा है।
अब भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि भारतीयो को काबुल एयरपोर्ट तक कैसे पहुँचाया जाये....क्योंकि तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान लड़ाकों ने जगह-जगह अपनी चेक पोस्ट खड़ी कर दी है और वह काबुल एयरपोर्ट आने वाले हर व्यक्ति की वे न केवल पूरी तलाशी लेते है बल्कि उसमें अंडगा भी लगाते है। दूसरी तरफ काबुल एयरपोर्ट पर मची अफरा-तफ़री के कारण भारतीयों का काबुल एयरपोर्ट पर एक साथ इकट्ठा होना भी सम्भव नहीं था....क्योंकि कब भगदड़ मच जाए या गोलीबारी हो जाये...किसे पता।
आखिरकार भारतीय अधिकारियों ने इसका हल भी ढूढ़ निकाला। उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के पास ही एक बड़े से गैराज का इंतजाम किया जहां वह लगभग 150-200 भारतीयों को एक साथ इकट्ठा किया जा सकता है.....भारतीय दूतावास, PMO और एयर फोर्स के बीच जबरदस्त coordination होता है......भारतीय दूतावास और इंटेलिजेंस एजेंसियों की मदद से रोजाना सबसे पहले भारतीयों को गैराज में इकठ्ठा किया जाता है। भारतीयों को इकठ्ठे करने का यह काम रात दिन चलता है....इसके लिये भारतीय अधिकारी पहले लोगों से संपर्क करते हैं, उन्हें एक निश्चित जगह पर आने को कहते हैं, फिर खुद अपनी गाड़ी लेकर उन स्थानों पर पहुँचते हैं, वहां से भारतीयों को गाड़ी में बैठा कर एयरपोर्ट लाया जाता है।
लेकिन ये काम इतना आसान नही है.....काबुल पर तालिबान हर जगह फैला हुआ है, हर चेक पोस्ट, हर चौराहे, हर दफ्तर में तालिबान के लोग ही बैठे हुए हैं, साथ मे हथियार भी रखते हैं......ऐसे में आप अंदाजा लगा लीजिये की भारतीय अफसरों और नागरिकों के लिए ये सफर कितना खतरनाक होता होगा।
भारतीय अफसर, जगह-जगह बनी तालिबानी चेक पोस्टों पर माथा पच्ची करते हुए नागरिकों को काबुल एयरपोर्ट से सटे गैराज में पहुँचाते है। जब गैराज में पर्याप्त भारतीय इकट्ठे हो जाते हैं तो इसकी सूचना भारतीय अधिकारी कजाकिस्तान में खड़े भारतीय वायुसेना के अधिकारियों और काबुल एयरपोर्ट में तैनात अमेंरिकी अधिकारियों तक पहुचाते हैं। इस पूरे comunication में विदेश मंत्रालय और PMO का एक्टिव involvement रहता है।
काबुल एयरपोर्ट का ATS कंट्रोल और सिक्योरिटी कंट्रोल इस समय अमेरिकी सेना के हाथ में है....इसलिए उनका clearance लेना भी जरूरी होता है.......जब अमेरिकी सेना द्वारा भारत के प्लेन को उतरने के लिये क्लियरेन्स दी जाती है, तब कजाकिस्तान एयरपोर्ट पर खड़ा भारतीय वायुसेना का प्लेन वहाँ से उड़कर काबुल पहुचता है.....जिस समय एयर फोर्स का प्लेन की लैंडिंग कर रहा होता है, उसी समय गैराज से सभी भारतीयों को Bullet proof गाड़ियों में एयरपोर्ट के अंदर पहुँचाया जाता है।
प्लेन के land होते ही, उसमे तैनात स्पेशल फोर्सेज position ले लेती हैं, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से निबटा जा सके, और दूसरी तरफ भारतीय अधिकारी लोगो को प्लेन में चढ़ाने का काम करते हैं......ये काम कुछ ही मिनटों में करना होता है, और उसके तुरंत बाद भारतीय अधिकारी उन गाड़ियों में गायब हो जाते हैं......अगले चक्कर मे जाने वाले नागरिकों को इकट्ठा करने के अपने काम मे लग जाते हैं।
वहीं एयर फोर्स का विमान take off की परमिशन लेता है ATC से, इसी बीच स्पेशल फोर्सेज के कमांडो भी स्थिति पर नज़र रखते हैं, और go ahead मिलते ही प्लेन airborne हो जाता है।
कुछ ही घंटों बाद हिंडन एयरबेस पर भारतीयों का आगमन हो जाता है। उसके बाद उन्हें उनके घरों तक बस, ट्रैन या फ्लाइट से पहुचाया जाता है......इस दौरान उनका खाना पीना, मेडिकल की सुविधा और counselling भी की जाती है.....क्योंकि अधिकतर यात्री Shock में होते हैं.....
और ये सब काम करती हैं हमारी सरकार, हमारी सेनायें, हमारा विदेश मंत्रालय, हमारी स्पेशल फोर्सेज, हमारे वो गुमनाम इंटेलिजेंस के लोग, और अफ़ग़ानिस्तान में तैनात कर्मचारी....जो जान हथेली पर ले कर दिन रात लगे हुए हैं, कि कैसे एक एक भारतीय को सुरक्षित वापस घर भेजा जाए।
भारत अब rescue mission में पारंगत हो चुका है, हम अब अपने लोगो को behind enemy lines छोड़ कर नही आते.....कैसी भी समस्या हो, हम हर अपने को बचा लेते हैं.....और यही कारण है कि दूसरे देश भी ऐसे मौकों पर भारत से सहायता मांगते हैं.....क्योंकि उन्हें भी पता है, कि ये नया भारत है, ये अब कुछ भी करेगा, लेकिन अपने लोगों को पराए देश मे असहाय मरने नही देगा..👍
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