जरा याद करो कुरबानी

 वीर अमर शहीद #विधार्थी_रामचंद्र_प्रजापति_जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन….!


• गोलियों की बौछार भी नहीं रोक पाई #तिरंगा फहराने से…… 


बात तब की है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन की आग पूरे देश में धधक रही थी, देवरिया भी इससे अछूता नहीं था। अंग्रेजों के खिलाफ यहां भी बगावत का बिगुल बज चुका था।

यहीं के एक छात्र थे #प्रजापति_रामचंद्र_विद्यार्थी। #14_अगस्त_1942 को अपने गांव से पैदल करीब 32 कि०मी० चलकर देवरिया पहुंचे। उस वक्त की देवरिया कचहरी (वर्तमान में गांधी आश्रम परिसर में स्वास्थ्य विभाग का दवा भंडार) भवन पर ब्रिटिश हुकूमत के यूनियन जैक ध्वज को उतार कर तिरंगा झंडा फहराने लगे।

यह देख उस वक्त के परगनाधिकारी उमाराव सिंह ने अंग्रेज सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया। लेकिन गोलियों की बौछार के बीच भी विद्यार्थी ने तिरंगा फहराया।

गोलियों से छलनी होते हुए भी भारत माता की जय का उद्घोष कर शहीद हो गए। देखते-देखते उनकी शहादत की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई। इसी के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्वाधीनता आंदोलन की आग और धधकने लगी। माता-पिता के अंदर भी थी देशभक्ति की भावना रामचंद्र विद्यार्थी के पिता बाबूलाल प्रजापति व मां श्रीमती मोती रानी के अलावा उनके बाबा भर्दुल प्रजापति के अंदर भी देश को आजाद कराने की ललक थी।

इनका पुश्तैनी कारोबार मिट्टी का बर्तन बनाना था। लेकिन स्वाधीनता आंदोलन के बीच क्रांतिकारियों को अपने घर में ठौर भी देते थे। शहीद रामचंद्र विद्यार्थी का जन्म 1 अप्रैल 1929 को छोटी गंडक नदी तट के गांव नौतन हथियागढ़ में हुआ था। वह बसंतपुर धूसी स्थित स्कूल में पढ़ते थे। स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी पंक्ति में गांधी जी के साथ चलने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू भी रामचंद्र विद्यार्थी से खासे प्रभावित थे। नेहरू ने देवरिया में अपने भ्रमण के दौरान रामचंद्र विद्यार्थी के पिता को देवरिया के अतिथि गृह में सम्मानित भी किया था।


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