लोकतंत्र में अधिकार और कर्तव्य दोनों हैं महत्वपूर्ण :-स्वामी चिदानंद मुनि



🔴 *“अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस’’*


🚩 *लोकतंत्र का सिद्धांत वेदों में समाहित*


💥 *लोकतंत्र में अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का संतुलन आवश्यक-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*


*15, सितम्बर, ऋषिकेश( अमरे


श दुबे संवादाता गोविंद कृपा ऋषिकेश )अन्तर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि भारत का लोकतंत्र दुनिया के मजबूत लोकतंत्र में से एक है। भारत ने अपनी क्षमताओं और संभावनाओं का उपयोग कर ऊँँचाइयों को छूआ है, ऐसे में हम भारतीयों को यह सुनियोजित व संकल्पित करना होगा कि हम अपने राष्ट्र और अपने लोकतंत्र को और बेहतर करने के लिये मिलकर प्रयास करे क्योंकि लोकतंत्र लोगों की या लोगों द्वारा स्थापित व्यवस्था है, जहाँ लोग अपने शासकों एवं प्रतिनिधियों को चुनने के लिए जिम्मेदार होते हैं। लोकतंत्र में स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा का मूल सिद्धांत समाहित हैं। 

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भारत, में तो लोकतांत्रिक व्यवस्था वैदिक काल से शुरू हुई थी, जो कि मजबूत भी रही हैं, इसके प्रमाण हमें अपने शास्त्रों, प्राचीन साहित्य, सिक्कों और विभिन्न अभिलेखों से प्राप्त होते है। सभा और समिति का उल्लेख ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों में मिलता है। उस समय के ऋषि, राजा, मंत्री और विद्वान आपस  में विचार-विमर्श कर निर्णय लेते थे अर्थात लोकतंत्र का सिद्धांत वेदों से उत्पन्न हुआ है। 

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि प्रजातंत्र में लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं इसलिये अधिकार एवं उत्तरदायित्व में संतुलन बनाये रखना प्रत्येक नगरिक का परम कर्तव्य है क्योंकि मज़बूत लोकतंत्र के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही सीमाओं को तय करना अत्यंत आवश्यक है। हम सभी भारतीयों का प्रयास हो कि हमारा राष्ट्र लगातार प्रगति के रास्ते पर अग्रसर होता रहे; हमारा समाज समावेशी बने एवं राष्ट्र की गरिमा सदैव बरकरार रहे।

प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस आम जनमानस को वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र की स्थिति की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लोकतंत्र समावेश, समान व्यवहार और भागीदारी पर बनाया गया है। लोकतंत्र को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, राष्ट्रीय शासी निकाय, नागरिक समाज और आम व्यक्तियों की पूर्ण भादीगारी के माध्यम से ही जीवंत रखा जा सकता है। इस दृष्टि से स्वतंत्रता के मूल्य, मानव अधिकारों के लिये सम्मान और सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर चुनाव कराना आदि लोकतंत्र के आवश्यक तत्त्व हैं। यह दिवस वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से विभिन्न देशों की सरकारों को अपने देश में लोकतंत्र को मज़बूत और समेकित करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु स्थापित किया गया था, इसके पश्चात वर्ष 2008 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया था।


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