शिक्षा की तरह स्वास्थ्य चिकित्सा भी बने मौलिक अधिकार


 !!कोरोना महामारी और भारत का स्वास्थ्य सेवा तंत्र!!


देश ने कोरोना की दूसरी में लहर स्वास्थ्य सेवा तंत्र का जो मंजर देखा उसे भुलाया नहीं जा सकता।ऑक्सीजन की कमी से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में गई असंख्य जानें जाने से देश में मौजूदा स्वास्थ्य सेवा तंत्र को मजबूत करने की मांग उठने लगी।अब प्रश्न उठता है कि क्या देश में शिक्षा के अधिकार की तरह जनता को स्वास्थ्य के बुनियादी अधिकार  मिलेंगे?..... 


कोरोना की दूसरी लहर से हुए नुकसान से 

देश का आम नागरिक भी शिक्षा के मौलिक अधिकार की तरह स्वास्थ्य को भी मौलिक अधिकार का दर्जा दिए जाने की जरूरत महसूस कर रहा है। देश की अनेकों राज्य सरकारों ने स्वास्थ्य सेवा तंत्र को मौलिक अधिकारों में सामिल किये जाने का अपने-अपने राज्यों में विधेयक लाने की भी बात कही है। कोरोना महामारी के दौरान हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति उजागर हो गई। ग़रीब, वंचित और आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाएं, इसके लिए स्वास्थ्य तंत्र को मज़बूत बनाना होगा। इसके लिए स्वास्थ्य को संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया जाए। 


नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने 

शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सन् 2001 में कैलाश सत्यार्थी ने शिक्षा के मौलिक अधिकार को केंद्र में लाने के उद्देश्य से 20 राज्यों में कन्याकुमारी से कश्मीर होते हुए दिल्ली तक की 15 हजार किलोमीटर लंबी शिक्षा यात्रा का आयोजन किया था तथा इस जनजागरण यात्रा की समाप्ति पर कैलाश सत्यार्थी ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रतिपक्ष के नेताओं से मुलाकात की थी। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि वर्तमान समय में शिक्षा का अधिकार अधिनियम अस्तित्व में आया, जिससे आज देश के करोड़ों बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।


भारतीय संविधान में भले ही स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा न मिला हो,परंतु अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है।जीवन और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं। एक अच्छे स्वास्थ्य के बिना जीवन का अस्तित्व खतरे में रहता है और बिना जीवन के स्वास्थ्य के अस्तित्व का सवाल ही नहीं है। अगर देश का संविधान हमें जीवन जीने का अधिकार दे सकता है तो संविधान में हमें स्वास्थ्य का अधिकार भी मिलना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया का यह कथन कि संविधान में "सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य के अधिकार का मतलब है कि हर किसी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए, जब और जहां उन्हें इसकी आवश्यकता हो बिना आर्थिक तंगी झेले मिलनी चाहिए। यह कथन महत्वपूर्ण है। यह स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार दिए जाने की कैलाश सत्यार्थी की मांग को रेखांकित करता है।


वर्तमान समय में आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति अपना या अपने परिजन का इलाज किसी निजी अस्पताल में कराने के लिए सक्षम नहीं होता और सरकारी अस्पतालों में लगने वाली लंबी कतारों और तारीखो से हम  भली भांति परिचित हैं। सरकारी अस्पतालों में आज भी बेड्स की संख्या सीमित हैं। लेकिन इसकी आस में जीने वाले लोगों की संख्या बेड्स की तुलना में असीमित हैं। हमें हमारे स्वास्थ्य तंत्र सेवा में ऐसे हालात भविष्य में न बनें इसके लिए कुछ करना होगा। इसकी शुरुआत स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार में शामिल किए जाने से की जा सकती है जो समाज के हर वर्ग के व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने की गारंटी देगा।


देश की आत्मा गांव में निवास करती है और आज भी देश के ग्रामीण इलाकों से अच्छे इलाज के लिए शहर की तरफ रुख करना पड़ता है। स्वास्थ्य की गारंटी इस खोखले स्वास्थ्य सेवा तंत्र को भरने के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जहां वंचित वर्ग को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ता है और अपनी जान देनी पड़ती है। वर्तमान समय में भारत में शिशु मृत्यु के प्राथमिक कारण समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन,निमोनिया,जन्म आघात,दस्त रोग,और तीव्र जीवाणु सेप्सिस और गंभीर संक्रमण हैं। इनमें से अधिकांश समस्याओं को एक सुसज्जित सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के साथ प्रबंधित किया जा सकता है। उचित स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे, वितरण देखभाल,उपकरण और दवाओं के अभाव में हर साल हजारों बच्चे दम तोड़ देते हैं। वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य की दिशा में कई कदम उठाएं गए हैं। 2018 की अस्ताना घोषणा सरकारों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक आवश्यक मार्ग के रूप में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है। 


भारत जैसे विशाल देश की स्वास्थ्य सेवा तंत्र को मजबूत करना है तो इसके लिए जरुरी कदम उठाने होंगे। पहला कदम यह होना चाहिए कि संविधान में संशोधन करके स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए। दूसरा यह कि स्वास्थ्य सेवा तंत्र के बजटीय आवंटन को जीडीपी के तीन प्रतिशत तक बढ़ाया जाए। अंत में स्वास्थ्य देखभाल विनियमन,निगरानी,जवाबदेही, मानक सेटिंग और सूचना विषमताओं को कम करने के लिए एक निकाय का निर्माण हो। अगर मौजूदा सरकार द्वारा यह तीन कदम उठाएं जाए तो देश के हर वर्ग के व्यक्ति के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सकता है।

(कमल किशोर डुकलान रूडकी )

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