नृत्यांगना रूपा रविंद्रन ने परमार्थ घाट पर प्रस्तुत किया कथक नृत्य




🛑 *नृत्यांगना रूपा रवींद्रन पहुंची परमार्थ निकेतन*


🟢 *पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज से लिये आशीर्वाद*


💫 *परमार्थ गंगा तट पर कथक नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति*


💥 *नृत्य साधना अर्थात् आत्मिक सौंदर्य से साक्षात्कार- पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*


*ऋषिकेशए 28 सितम्बर  (अमरीश दुबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश )परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज से सुश्री रूपा रवींद्रन; नृत्यंगनाए एक्ट्रेसए कोरियोग्राफरए फाउंडर और डायरेक्टर अर्थ एलिमेंट्स ऑफ आर्ट एंड हेरिटेज एकेडमीए डिग्री कॉलेज ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्सए बैंगलोरद्ध ने भेंट कर आशीर्वाद लिया।

परमार्थ निकेतन गंगा तट पर सुश्री रूपा रवींद्रन ने कथक नृत्य की प्रस्तुति माँ गंगा जी को समर्पित कीए जिसे देखकर उपस्थित सभी श्रद्धालुओं मंत्रमुग्ध हो गये।

पूज्य स्वामी जी ने आज भारत रत्न से सम्मानित सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर को आज उनके 93वें जन्मदिन पर शुभकामनायें देते हुये कहा कि आप स्वस्थ रहेंए मस्त रहेंए आप दीर्घायु होंए दिव्यायु हों। आपने संगीत के क्षेत्र में अद्भुत योगदान दिया आने वाली पीढ़ियाँ आपको सदियों तक याद रखेगी।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि आज का युवा प्रतिभासंपन्न हैए जरूरत है तो उन्हें एक मंच प्रदान करने कीए जहां पर वे अपने आप को साबित कर सकें।  उन्होंने कहा कि भारत एक विविध संस्कृति वाला राष्ट्र है और भारतीय संस्कृति व जीवनशैली में विविध संस्कृतियों और कलाओं का समन्वय है। हमारी सभ्यता और संस्कृति की विशालता और महत्ता इसलिये भी है क्योंकि हम वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र भावना में विश्वास करते हैं।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हमारी गौरवशाली संस्कृति हमारे  देश और देशवासियों की आत्मा में समाहित हैए हमारी संस्कृति से ही हमारे श्रेष्ठ संस्कारों का बोध होता है जिनके आधार पर हम अपने आदर्शों और मूल्यों को निर्धारण करते है। हमारी दिव्य संस्कृति में कलाए विज्ञानए संगीतए नृत्य और मानव जीवन की उच्चतम उपलब्धियाँ सम्मिलित है। भारतीय संस्कृति समस्त मानव जाति का कल्याण चाहती है। भारतीय संस्कृति में  प्राचीन गौरवशाली संस्कारों एवं परंपराओं के साथ ही नवीनता का समावेश भी दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं का महासंगम है। आज हम उसे जाग्रत रूप में प्यारी रूपा रवींद्रन के कथक नृत्य के माध्यम से देख रहे हैं।

भारतीय संस्कृति में मानव और प्रकृति का भी अद्भुत समन्वय है। हमारी संस्कृति मानवए प्रकृति और पर्यावरण के अटूट संबंधों पर आधारित है। भारतीय उपनिषदों में ईशावास्यमिइंद सर्वम् अर्थात् जगत् के कण-कण में ईश्वर की व्याप्तता को स्वीकार किया गया है इसलिये जीवन की सभी साधनायें  कण-कण में व्याप्त ईश्वर को समर्पित है और नृत्य साधना तो हमें अपने आत्मिक सौंदर्य से परिचित कराती हैं। इस अवसर पर पूज्य स्वामी जी ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प कराया।

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