पित्र पक्ष का महत्व (कमल किशोर डुकलान रुड़की)

 !!श्राद्ध पक्ष पितरों के प्रति 

             कृतज्ञता अभिव्यक्त करने कर्म!!


सनातन धर्म एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने एवं उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। ...


 हिन्दू धर्म में व्यक्ति के अवतरण से लेकर मृत्यु पर्यन्त अनेक


प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। उसके बाद परिजन अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने अथवा उनको याद करने के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। वैसे तो पितृ आत्मा की मोक्ष तिथि से ही प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की पुण्य तिथि के नाम पर श्राद्ध कर्म किया जा सकता है,लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा एक पूरा पखवाड़ा हिन्दू धर्म में अपने पूर्वजों को श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने के लिए श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसी को श्राद्ध पक्ष कहते हैं।

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार किसी भी देवपूजा से पहले परिवारी जन अपने पूर्वजों की पितृ रुप में पूजा करते हैं। पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय सनातन संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गो का सम्मान और मृत्यु के उपरांत उनके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने के लिए

श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि यदि नियमानुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें वैकुंठ लोक धाम में मुक्ति नहीं मिलती है। नव दुर्गा की नवरात्र रुपी पूजा से पूर्व अपने पितरों का आह्वान किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष का आरंभ होते ही गौं लोकवासी पुण्य आत्माएं पितृ रुप में इस  पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए जिस दिन उनकी तिथि होती है उससे एक दिन पर्व संध्या समय में दरवाजे के दोनों ओर जल दिया जाता है जो पितरों को आमंत्रण का देता हैं। ऐसा कहां जाता है,कि जब पितृ भोज के रुप में ब्राह्मण देव स्वरुप को उनके निमित्त भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रुप पितृ रुपी पुण्य आत्माओं तक भी पहुंचता है। भोजन के पश्चात जब ब्राह्मण बदले में पितर रुप में आशीर्वाद देते हुए अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं उनके साथ ही पितरों का भी बैकुंठ लोक गमन हो जाता है। ऎसा भी माना गया है कि जो अपने बड़े-बूढों की जीते जी सेवा नहीं करते एवं मरने के बाद पुण्य आत्मा रुपी पितरों को नहीं मनाते उनको जीवन पर्यन्त आत्म संतुष्टि नहीं होती वे काफी परेशान भी रहते हैं।


पितृ पक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले 16 ग्रास अलग-अलग चीजों के लिए निकाले जाते हैं जिसमें गौ ग्रास तथा कौवे का ग्रास मुख्य माना जाता है। मान्यता है कि कौवा आपका संदेश पितरों तक पहुंचाने का काम करता है। भोजन में खीर का महत्व है इसलिए खीर बनानी आवश्यक है। भोजन से पहले ब्राह्मण संकल्प भी करता है। जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है तो उसके हाथ में जल देकर संकल्प के द्वारा पुण्य आत्माओं का स्मरण कराया जाता है। 

ऐसी अज्ञात आत्माओं के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने के लिए उनके परिवारी जन आश्विन मास की अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करता है और अपनी सामर्थ्यानुसार पितृ रुप में ब्राह्मण को पूजता है।२० सितम्बर से श्राद्ध पक्ष चल रहा है इसलिए वर्ष में एक बार अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने एवं उन्हें याद करने के निमित्त किये जाने वाले श्राद्ध कर्म को समझना आवश्यक है।

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