जन जन के आराध्य हैं भगवान श्री राम


 !!अयोध्या में जन-जन का श्रद्धाकेन्द्र श्री राम मन्दिर!!


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हमारी संस्कृति सृजनधर्मा है। श्रीराम के प्रति अपनी सामूहिक आस्था एवं विश्वास के बल पर हम इस महा चुनौती से भी साहस सावधानी और सतर्कता से जूझेंगे लड़ेंगे और अंतत पार पाएंगे। 


राम मात्र एक नाम नहीं,बल्कि मन-प्राण,जीवन-आधार एवं जन-जन के कंठहार हैं। श्रीराम और भारत के पर्याय और प्रतिरूप हैं।राम नाम-स्मरण एवं महिमा-गायन से कोटि-कोटि जनों को जीवन की सार्थकता का बोध होता है। भारत के कोटि-कोटि जन उनके दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न संदर्भों-पहलुओं का आकलन-विश्लेषण करते हैं। भारत से राम और राम से भारत को कभी अलग नहीं किया जा सकता,क्योंकि राम भारत की आत्मा हैं।जिस प्रकार शरीर से आत्मा को अलग नहीं किया जा सकता है। उसी प्रकार शरीर रुपी भारत से राम रुपी आत्मा को अलग नहीं किया जा सकता है। राम के अस्तित्व में ही भारत का अस्तित्व है। राम के सुख में ही भारत के जन-जन का सुख आश्रय पाता है। उनके दुख में भारत का कोटि-कोटि जन आंसुओं के सागर में डूबने लगता है। कितना अद्भुत है उनका जीवन चरित, जिन्हें बार-बार सुनकर भी और सुनने की चाह बची रहती है। रामलीलाओं में राम के चरित का मंचन हम वर्षों से करते आ रहे हैं। इतना ही नहीं,उस चरित को पर्दे पर अभिनीत करने वाले पात्र,लिखने वाले कथाकार तथा उनकी महिमा का गान करने वाले कथावाचक वाले हमारी श्रद्धा के केंद्र बन जाते हैं। उस महानायक से जुड़ते ही सर्वसाधारण के बीच से उठा-उभरा आम जन भी नायक सा लगने लगता है। उनके सुख-दुख,हार-जीत,मान-अपमान में हमें अपने सुख-दुख,हार-जीत,मान-अपमान की अनुभूति होती है। उस महामानव के प्रति यही हमारे चित्त की अवस्था है।


राम जन्मभूमि अयोध्या में षड्यंत्र के अंतर्गत तमाम पुरातात्विक अवशेषों और प्रमाणों के बावजूद उनके होने के प्रमाण मांगे जाते रहे? आखिर किस षड्यंत्र के अंतर्गत उनकी स्मृतियों को अयोध्या में जो मिटाने-हटाने के असंख्य प्रयत्न मुगल काल में किए जाते रहे हैं। देखा जाए जो तमाम राजनीतिक दलों एवं बुद्धिजीवियों को केवल राम-मंदिर से ही नहीं,बल्कि जय श्री राम के जयघोष से,राम के चरित पर आधारित कथा से,यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसके पक्ष में सुनाए गए ऐतिहासिक एवं बहुप्रतीक्षित फैसले से भी आपत्ति है? क्यों उन्हें एक आक्रांता की स्मृति में खड़े गुलामी के प्रतीक से इतना मोह है? मजहब बदलने से न ही पुरखे बदलते हैं,और न ही संस्कृति ही बदलती है। राम मंदिर पर आए फैसले का विभिन्न मतावलंबियों द्वारा मुक्त कंठ से स्वागत किया जाना यहीं सिद्ध करता है कि जितने भी राजनीतिक पार्टियों ने दशकों तक जातिवादी-सांप्रदायिक राजनीति एवं खंडित अस्मिताओं को उभारकर राजनीतिक रोटियां सेंकीं,उन्हें ही भारत की सामूहिक एवं सांस्कृतिक चेतना एवं अस्मिता के प्रतीक पुरुष श्रीराम और राम मंदिर से परेशानी रही है,क्योंकि श्रद्धा,आस्था और विश्वास की इस भावभूमि पर  प्रयासपूर्वक रोपी गई विभाजनकारी विष-बेल के फलने-फूलने के आसार घट जाते हैं।


राम के जिस चरित को हमने पीढ़ी-दर-पीढ़ी  हम अपनी सामूहिक एवं गौरवशाली थाती के रूप में सहेजते-संभालते आए,आखिर किन षड्यंत्रों के अंतर्गत उन्हें काल्पनिक बताया गया? उसके अस्तित्व को लेकर शंका के बीज वर्तमान पीढ़ी के हृदय में क्यों बोए? जो एक चरित्र करोड़ों लोगों के जीवन का आधार रहा हो,जिसमें करोड़ों लोगों की सांसें बसी हों,जिनसे कोटि-कोटि जन प्रेरणा पाते हों,जिनको हर काल और हर युग के लोगों को संघर्ष एवं सहनशीलता,धैर्य एवं संयम,विवेक एवं अनुशासन की प्रेरणा दी हो,जिनके चरित्र की शीतल छाया में कोटि-कोटि जनों के ताप-शाप मिट जाते हों, जिसका धर्म-अधर्म का सम्यक बोध कराता हो,जो मानव-मात्र को मर्यादा और लोक को ऊंचे आदर्शों के सूत्रों में बांधता-पिरोता हो, जो हर युग और काल के मन-मानस को नए सिरे से मथता हो और विद्वान मनीषियों के हृदय में बारंबार नवीन एवं मौलिक रूप में आकार ग्रहण करता हो,ऐसे परम तेजस्वी, ओजस्वी,पराक्रमी,मानवीय श्रीराम को काल्पनिक बताना राष्ट्र की चेतना,प्रकृति और संस्कृति का उपहास उड़ाना नहीं तो और क्या है?अच्छा तो यह होता कि आजाद भारत में भी श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण में विलंब करने या जानबूझकर अड़ंगा डालने वालों को कठघरे में खड़ा कर उनकी नीति और नीयत पर सवाल पूछे जाते हैं। 


लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप अंतत: अयोध्या में श्रीराम का मन्दिर निर्माण आस्था एवं विश्वास के रुप में राम भक्तों की विजय होनी थी,सो हुई। अयोध्या में श्रीराम के मंदिर को लेकर जनमानस में जो आस्था एवं उत्साह है, उसकी एक झलक देश ने श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान के दौरान पूरे देश भर में देखी। जितना लक्ष्य रखा गया था, इस देश के श्रद्धालु समाज ने उससे कई गुना अधिक राशि ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' के भाव से समर्पित की। प्रभु श्रीराम ने सर्वसाधारण यानी वनवासी-गिरिवासी, केवट-निषाद-कोल-भील-किरात से लेकर वानर-भालू-रीछ जैसे वन्यप्राणियों को भी उनकी असीमित शक्ति की अनुभूति कराई थी। हम पिछले डेढ वर्ष से भी अधिक समय से संपूर्ण मानवता के शत्रु कोरोना रूपी रावण पर अपने सामूहिक धैर्य, विवेक, संयम,साहस और अनुशासन से विजय पाने में समर्थवान हुए हैं। भारत ने भी कोरोना को हराने में पूरी देश-दुनिया के अन्दर अपनी असीमित शक्तियों की अनुभूति कराई है।

कोरोना की भयावहता के कारण भले ही जनमानस कुछ समय के लिए हताश और निराश रहा हो,परन्तु पराजित नहीं हुआ। प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम जीवन की अजेयता के गीत गाते रहे हैं,गाते रहेंगे। हमारी संस्कृति सृजनधर्मा है। हम सृजन के वाहक बन समय की हर चाप और चोट को सरगम में पिरोते रहेंगे।  

(कमल किशोर डुकलान रुड़की)


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