ग़ज़ल
ये हकीकत थी कहानी कब थी।
बात हमको ये छिपानी कब थी।।
ठीक से मरते न जीते हैं हम।
जिंदगी ऐसी बितानी कब थी।।
फूल सब इतरा रहे हैं देखो।
ये फजा इतनी सुहानी कब थी।।
तुम नहीं मौजूद जिसमें जानां।
वो कहानी यूं सुनानी कब थी।।
आप ही जिद पर अड़े थे कब से।
ये लकीरें तो मिटानी कब थी।।
हाथ पकड़ा था दिखावे को बस।
दोस्ती उनको निभानी कब थी।।
सूरतें हम जो भुला बैठे थे।
आइने को वो दिखानी कब थी।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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