बंगाल का लोक पर्व है काली पूजा




बंगाल का लोक पर्व है काली पूजा कार्तिक मास की अमावस्या को जहां उत्तर भारत में दीपावली का पर्व देवी लक्ष्मी जी और भगवान राम सीता को समर्पित होता है वही बंगाल में यह पर्व काली पूजा के रूप में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो धनतेरस से प्रारंभ होकर भैया दूज के अगले दिन तक चलता है ।इस पर्व में जहां देवी काली की पूजा होती है वही जगह-जगह बड़े-बड़े पंडाल लगाकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से बंगाल के लोक संगीत का भी मंचन होता है।  स्थानीय कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर बंगाल की लोक कला लोक नृत्य और पारंपरिक लोक कला को गीत संगीत नृत्य गायन के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं बंगाल में दुर्गा पूजा के बाद यह सबसे बड़ा पर्व होता है जिसमें बंगाली समुदाय लगातार 3 से 5 दिन तक समारोह आयोजित कर मां काली से जीवन की  कलुषिता, कष्ट मिटाने के लिए मां कालरात्रि काली जो नौ देवियों में से कालरात्रि के रूप में पूजी जाती है उनकी प्रसन्नता के लिए पूजा-अर्चना करता है वही यह पर्व गुजरात में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है तो उत्तर भारत में लक्ष्मी पूजा का मुख्य पर्व है जो दीपावली के नाम से लोक प्रसिद्ध है भारत की विविधता में एकता का दर्शन हमारे लोक पर्व त्यौहार करवाते हैं जहां उत्तर भारत में नौ दिन तक नवरात्रि मे मां भगवती के नौ रूपों की पूजा की जाती  हैं वही बंगाल में दुर्गा पूजा सरस्वती पूजा और काली पूजा मुख्य पर्व है। काली पूजा का पर्व धनतेरस पर विशाल पंडालों में काली की प्रतिमा स्थापना के साथ शुरू होता है और भैया दूज से अगले दिन इन प्रतिमाओं को विशाल जुलूस ओं के साथ पवित्र नदियों सरोवर में विसर्जित किया जाता है और साथ ही यह पर्व संपन्न हो जाता है वहीं बिहार में और पूर्वांचल प्रदेशों में छठ पूजा का शुभारंभ हो जाता है इस प्रकार पूरा कार्तिक मास हमारे देश में भगवान सूर्य की आराधना मां लक्ष्मी मां काली कुबेर भगवान की पूजा और भगवान श्री राम के अयोध्या पहुंचने के उत्सव के रूप में जनमानस में हर्ष व्याप्त करता है और हमारे त्योहारों की एक लंबी श्रंखला कार्तिक मास में चलती रहती है

(दीपांकर जाना)

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