मोदी युग में गुमनाम हस्तियों को मिल रहे हैं पदम पुरस्कार



 !!गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान,

                अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा!!


राष्ट्रपति भवन में साधारण वस्त्र पहने एवं नंगे पैर चलने वाले समान्य लोगों को उनके विशिष्ट कार्यों के लिए पद्म सम्मान देकर भारत सरकार ने पिछले लम्बे समय से चली आ रही प्रथा को ध्वस्त करने का काम किया है जिसमें ऊंची राजनैतिक पैट एवं असाधारण वाले लोगों को पद्म पुरस्कार मिलता था।


देश के सर्वोच्च सम्मान पाने वालों की सूची में वर्ष दर वर्ष ऐसे नामों की संख्या बढ़ना सुखद है,जो गुमनाम रहकर अपनी-अपनी तरह से समाज सेवा कर रहे हैं। इनमें से कई नाम तो ऐसे हैं,जिन्होंने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें यह सम्मान मिलेगा। यदि सरकार ऐसे सच्चे और निस्वार्थ समाजसेवियों को खोज-खोजकर उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित कर रही है तो वह न केवल उनके योगदान को ही रेखांकित नहीं कर रही है,बल्कि देश के लोगों को नई दिशा देने का भी काम कर रही है। इसी के साथ वह पद्म सम्मानों का मान बढ़ाने का भी काम कर रही है। इस वर्ष ऐसे नाम इसलिए भी अधिक चर्चा में आए, क्योंकि इस बार दो वर्ष के पद्म सम्मान एक साथ दिए गए। पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण ये सम्मान देने का कार्यक्रम रद करना पड़ा था।


किसी पुरस्कार-सम्मान की महत्ता तभी बढ़ती है,जब सर्वथा योग्य लोग उसके पात्र बनते हैं। बीते कुछ समय से अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वालों के साथ-साथ ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले साधारण तरीके से जीवनयापन करने वालों को भी जिस तरह उनके असाधारण कार्यों के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान प्रदान किए,उससे यह धारणा ध्वस्त एक प्रकार से हुई है कि ये सम्मान उन्हें ही मिलते हैं, जिनकी सत्ता के गलियारों तक पहुंच हो। भारत सरकार इसके लिए धन्यवाद की पात्र है कि उसने लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को तोड़ने का काम किया।


कुछ समय पहले तो यह कल्पना करना कठिन था कि राष्ट्रपति भवन में साधारण वस्त्र पहने और यहां तक कि नंगे पैर चलने वाले लोग पद्म सम्मान लेने आएंगे और प्रधानमंत्री समेत देश की अन्य प्रमुख हस्तियां उनके सम्मान में तालियां बजाएंगे। सड़कों पर संतरे बेचने और फिर भी अपने गांव में स्कूल खोलने वाले हरेकाला हजब्बा हों या फिर जड़ी-बूटियों संग पेड़-पौधे लगाकर पर्यावरण की सेवा करने वाली तुलसी गौड़ा अथवा देसी बीजों से जैविक खेती की अलख जगाने वाली राहीबाई सोमा या फिर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मुहम्मद शरीफ और ट्रांसजेंडर लोक नर्तक मंजम्मा जोगाठी, इन सबके सम्मानित होने से पद्म सम्मान की गरिमा बढ़ी है।


निश्चित रूप से इससे उन अनगिनत लोगों को प्रेरणा मिलेगी,जो बिना किसी प्रशंसा-पुरस्कार की आस में अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने में लगे हुए हैं। ये वे लोग हैं जो न केवल आम नागरिकों में दायित्व बोध जगाते हैं,बल्कि समाज को बेहतर बनाने का काम भी करते हैं। उम्मीद की जाती है कि अब जब सरकार गुमनाम नायकों का सम्मान कर रही है,तब समाज भी उनके योगदान को जानने के साथ-साथ उनसे प्रेरणा लेने के लिए सजग होगा। 

(कमल किशोर डुकलान रूडकी )

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