ग़ज़ल
बदलता बात हर लम्हा कभी कुछ है कभी कुछ है।
लगाया उसने है चहरा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
हमारी बात रहने दो उन्हीं का जिक्र करते हैं।
बताएं क्या कि वो लहजा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
हमारी बात को साहब लिया हल्के बहुत तुमने।
तुम्हारी जात से शिकवा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
सुनी मन की तुम्हारी बात सब है ध्यान से हमने।
तुम्हारा एक-इक जुमला कभी कुछ है कभी कुछ है।।
जरा सी बात पे तूफान तुमने तो उठा डाला।
तुम्हारी जात से तौबा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
नहीं सुनता किसी की बात बस अपनी चलाए है।
सियासत का तेरी चहरा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
वफा के नाम पर तूने सदा ही बेवफाई की।
मुहब्बत का तेरी किस्सा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
तेरे बीमार हैं हम तो शिफा कैसे मिले हमको।
तुम्हारा यार हर नुस्खा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
लगाई थी जो उम्मीदें वो सारी तोड़ डाली हैं।
दिया हर बार ही गच्चा कभी कुछ है कभी कुछ है।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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