स्वामी चिदानंद मुनि ने चित्रकूट अधिवेशन को किया संबोधित



💥 *संविधान है समाधान, समाधान अर्थात समान विधान-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज*


*ऋषिकेश, 15 दिसम्बर (अमरेश दुबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश )


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने चित्रकूट में आयोजित हिन्दू एकता महाकुम्भ में सहभाग कर पर्यावरण और नदियों के संरक्षण के विषय पर उद्बोधन दिया। इस दिव्य मंच से मन्दाकिनी और यमुना आदि नदियों की स्वच्छता और अविरलता के विषयों पर विशद चर्चा हुई। इस दिव्य महाकुम्भ का कुशल संचालन पूज्य स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज ने किया। 

हिन्दू एकता महाकुम्भ के अवसर पर माननीय सर संघसंचालक, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ श्री मोहन भागवत जी के उद्बोधन ने सब के अन्दर मानों प्राणतत्व ही डाल दिया। उनके संकल्प ने सभी को एक सूत्र में बांध दिया। उसके पश्चात सभी ने एक नई ऊर्जा, उमंग, उत्साह देखना जैसा था। भारत माता की जय और वंदे मातरम् के उद्बोधन से पूरा सभागार गूंज गया।

श्री गुरूकार्ष्णि पीठाधीश्वर पूज्य गुरूशरणानन्द जी महाराज ने भगवान श्री राम जी की वाणी और आचरण को अत्मसात करने का संदेश दिया। 

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि समाज में अनेक तरह के प्रदूषण है-भीतर, बाहर, वैधानिक, वैचारिक, सांस्कृतिक प्रदूषणों को दूर करने के लिये सोच को प्रदूषण मुक्त करना होगा तथा जनसंख्या नियंत्रित करनी होगी। हमें हम दो हमारे दो, सबके दो, जिसके दो उसी को दो का सूत्र लागू करना होगा।

पूज्य स्वामी जी ने 1999 में काशी के पवित्र घाट पर शुरू की विश्व विख्यात गंगा आरती का जिक्र करते हुये कहा कि हमारे धर्मग्रंथों हमें पर्यावरण और नदियों के संरक्षण का संदेश देते है। हमारे शास्त्रों में बड़ी ही दिव्यता से कहा गया है माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः। यजुर्वेद में भी कहा गया है- नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्याः। पृथ्वी हमारी माता है और हम उनकी संतान हैं इसलिये हम समाधान का हिस्सा बनें समस्या का नहीं।

 हमारे धर्म ग्रंथ हमें वसुधैव कुटुम्बकम् का भी संदेश देते है, अर्थात पूरी दुनिया एक परिवार है और इसमें केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त जीव-जंतु हमारा परिवार हैं। यजुर्वेद में द्यौः शांतिरंतरिक्षं’ शांतिपाठ के माध्यम से हमारे ऋषियों ने सर्वशक्तिमान से समस्त पृथ्वी, वनस्पति, परब्रह्म सत्ता, संपूर्ण ब्रह्मांड और कण-कण में शांति की प्रार्थना की हैं। अतः हम हड़पने की संस्कृति से हरित  संस्कृति की ओर बढ़े। भारतीय संस्कृति हमें मानवीय मूल्यों को विकसित करने का संदेश देती है इसलिये हमें युवाओं में  उपभोग करो और फेंक दो की संस्कृति नहीं बल्कि उपभोग करो और उगाओं की संस्कृति विकसित करनी होगी तभी हम एक उज्जवल, सुरक्षित, स्वस्थ, हरित भविष्य का निर्माण कर सकते है और इसके लिये हमें लोकल के लिए वोकल और सोशल बनाना होगा।

पूज्य श्री श्री रविशंकर जी ने कहा कि जहां पर हिन्दू संत एकत्र होते हैं वहां अभय होता है। हिन्दू संस्कृति सभी को अपनाने की संस्कृति है, सब को अपनाना यही प्रेम का मंत्र है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति और देव भक्ति एक सिक्के के दो पहलू है।

जगद्गुरू निबांर्काचार्य पूज्य श्यामशरण देवाचार्य जी महाराज ने कहा कि हिन्दू एकता को विभाजित करने वाली संस्कृति को विराम लगाना आवश्यक है।

पूज्य साध्वी ऋतम्भरा दीदी जी ने कहा कि हमें शिक्षा, नारी शक्ति, संस्कार और संस्कृति की रक्षा के लिये कार्य करने की जरूरत है।

निर्मलपीठाधीश्वर पूज्य स्वामी ज्ञानदेव सिंह जी महाराज ने कहा कि हिमालय के पर्वत से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा राष्ट्र एक है। सब के घट में श्री राम है।

ज्योतिर्पीठाधीश्वर जी ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और गौ रक्षा के साथ संस्कृत पाठशाला की रक्षा के लिये कार्य करना होगा। उन्होंने भारत सरकार से निवेदन किया कि संस्कृत को अनिवार्य करना जरूरी है और इसके लिये संस्कृत शिक्षकों को तैयार करना होगा।

आचार्य लोकेश मुनि जी ने कहा कि हिन्दू एकता बहुत आवश्यक है। गर्व से कहो हम हिन्दू है। हमारी एकता और अखंडता बनी रहे

पूज्य स्वामी प्रवेशानन्द जी महाराज ने कहा कि चित्रकूट पर जो चित्र अंकित हुआ है वही एकता का चित्र पूरे देश में भी बनाना है।

पूज्य स्वामी जी ने सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का व जल शुद्धि का संकल्प करवाया। हिन्दू एकता महाकुम्भ के मंच से सभी पूज्य संतों ने अपने अनमोल और प्रेरक विचार रखे।



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