भटकी हुई कांग्रेस


 !!अपनी मूल विचारधारा से भटकी आज की कांग्रेस!!


कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भरे मंचों से हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बताने में लगे हुए हैं। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि हिन्दू रुपी शरीर से आत्मा रुपी विचार को एक दूसरे से अलग करना मुश्किल है। राहुल गांधी का हिन्दू और हिन्दुत्व में अंतर बताना ये कांग्रेस के विचारों के भटकाव को ही दर्शाता है।......


कांग्रेस के स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने एक बार फिर वह सब कुछ कहा,जो वह पहले भी कई बार कह चुकी हैं। उनके ऐसे कथन नए नहीं हैं कि देश का आम नागरिक असुरक्षित महसूस कर रहा है और संविधान को दरकिनार किया जा रहा है।संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। उनके इस प्रकार के कथनों से संसद का शीतकालीन सत्र का याद आना स्वाभाविक है,जिसे विपक्ष और खासकर कांग्रेस के हंगामे के कारण समय से सत्र को एक दिन पहले ही लोकसभा अध्यक्ष महोदय को समाप्त करना पड़ा।

अब सवाल उठता है कि आखिर संसद में कांग्रेस के इस हंगामे से कौन सी संसदीय परंपराएं समृद्ध हुईं? सोनिया गांधी की ओर से एक अर्से से दिए जा रहे एक जैसे बयान यही बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व स्तर पर ही विचारों का अभाव दिखता है। भले ही सोनिया गांधी ने यह कहा हो कि कांग्रेस भाजपा से अपनी वैचारिक लड़ाई जारी रखेगी,लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर देश के इस सबसे पुराने दल की विचारधारा क्या है? आज की कांग्रेस अपनी मूल विचारधारा से इतना भटकी क्यों है.?आज कांग्रेस में विचारों का भटकाव खुद कांग्रेसजनों के लिए ही समझना कठिन है कि कांग्रेस किन विचारों का प्रतिनिधित्व कर रही है? जो राहुल गांधी कुछ समय पहले मंदिरों की दौड़ लगा रहे थे और खुद को जनेऊधारी ब्राह्म्ण साबित करने में लगे हुए थे,वे पिछले कुछ समय से हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बताने में लगे हुए हैं। राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि हिन्दू से हिन्दुत्व को कभी अलग नहीं किया जा सकता है। हिन्दू रुपी शरीर से आत्मा रुपी विचार को परस्पर एक दूसरे से अलग करना मुश्किल है। भरे मंचों से राहुल गांधी का हिन्दू और हिन्दुत्व में अंतर बताना ये कांग्रेस के विचारों के भटकाव को ही दर्शाता है।

यह भी किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस किस तरह वामपंथी विचारों को आत्मसात कर चुकी है। वह न केवल उद्यमियों के साथ उद्यमशीलता पर प्रहार करने में लगी हुई है, बल्कि गरीबों को गरीब बनाए रखने वाली नीतियों का पोषण कर रही है। कांग्रेस हो या कोई अन्य दल,वह अपनी लड़ाई तभी लड़ सकता है,जब खुद उसकी अपनी विचारधारा स्पष्ट हो। समस्या केवल यह नहीं कि कांग्रेस अपनी विचारधारा को लेकर असमंजस से ग्रस्त है, समस्या यह भी है कि कांग्रेस यह नहीं तय कर पा रही है कि पार्टी का संचालन कैसे किया जाए? क्या यह विचित्र नहीं कि सोनिया गांधी ने पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर ऐसे कोई ठोस संकेत देना आवश्यक नहीं समझा कि वह कब तक अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी और कांग्रेस को अगला अध्यक्ष कब मिलेगा? ऐसे कोई संकेत न मिलने से तो यही स्पष्ट होता है कि वही कामचलाऊ व्यवस्था कायम रहेगी, जो सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद से लागू है और जिसके तहत राहुल गांधी पर्दे के पीछे से पार्टी चला रहे हैं।

(कमल किशोर डुकलान रूडकी) 

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