भाजपा की राजनीति में क्या बीसी खंडूरी युग का अंत हो गया है?

 यम्केश्वर से रितु खंडूरी का टिकट काटना क्या भाजपा  में खंडूरी युग का अंत है?


भाजपा ने उत्तराखंड में  जो आज  अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है । उसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला निर्णय यह है कि  यम्केश्वर से सुबे के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे भुवन चंद खंडूरी की पुत्री रितु खंडूरी का  यमकेश्वर से टिकट काट दिया गया है  ।उनके स्थान पर किसी और महिला को टिकट दिया गया है ।इस बात के कई अर्थ लगाए जा रहे हैं  जिनमें  एक यह भी है कि  क्या  भाजपा राजनीति में  खंडूरी युग का अंत हो चुका है ? पहले स्वयं खंडूरी मुख्यमंत्री रहते हुए  कोटद्वार से चुनाव हार गए  ,उसके बाद उनके पुत्र विद्रोह करके कांग्रेस में शामिल हो गए  और अब  रितु खंडूरी का टिकट भी कट गया  यह सब विषय  भाजपा के  लोगों के मन में कई तरह के सवाल पैदा कर रहे हैं ,वैसे क्षेत्र से आई सूचनाओं के आधार पर रितु खंडूरी अपनी विधानसभा में टाइम नहीं दे पा रहीे थी।  वे ज्यादातर दिल्ली ही रहा करती थी जिससे  भाजपा के कार्यकर्ताओं में रोष था  । वह विधायक रहते हुए अपने विधानसभा क्षेत्र यमकेश्वर के साथ  न्याय नहीं कर पा रही थी  इस कारण  वे भाजपा कार्यकर्ताओं  के कोप का भाजन बनी। उनके कई समर्थकों ने नाम न छापने की शर्त पर  यह कहा कि रितु खंडूरी का टिकट कटना क्षेत्र से उनके गायब रहने का  सबब है  वहीं दूसरी ओर देहरादून कैंट से सविता कपूर का टिकट होना स्वर्गीय हरबंस कपूर को भाजपा की ओर से  श्रद्धांजलि है। हरिद्वार जनपद की भेल रानीपुर सीट सेआदेश चौहान का तीसरी बार टिकट होना जहां उनकी संगठन पर पकड़ को दर्शाता है वही उनकी विधानसभा मेंउनकी लोकप्रियता, कर्मठता,सरलता और कार्यकर्ताओं के बीच में सदैव बना  रहने का प्रतिफल है ।खानपुर विधानसभा में कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के स्थान पर उनकी उनकी पत्नी देवयानी

 को टिकट देना भाजपा का एक दूरदर्शी निर्णय है जिसके परिणाम सकारात्मक निकलेंगे वही मंगलौर सीट पर पूर्व विधायक स्वर्गीय तेजपाल सिंह पवार के बेटे दिनेश पवार को टिकट देकर भाजपा ने गुर्जर मतदाताओं को साधा है और एक तीर से कई शिकार किए हैं क्योंकि पिछले चार बार से  भाजपा ने  मंगलोर सीट पर  गुर्जरों पर भरोसा नहीं किया।  जिसका परिणाम यह हुआ कि   जाटों की वोट बँट गई कुछ तो आरएलडी में चली गई और कुछ कांग्रेस में और बची कुची वोट ही भाजपा को मिल पाई। जिसका कारण पिछली बार मंगलोर सीट भाजपा जीते जीते रह गई। अब यह  देखने की बात है कि भाजपा का यह प्रयोग कितना सफल होता है।

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