।।आपराधिक धाराओं में आरोपित डा. महावीर अग्रवाल आदि से संस्कृत का ह्रास ही होगाः-
महामण्डलेश्वर स्वामी रुपेन्द्र प्रकाश महाराज
।।हरिद्वार 25 मार्च उत्तराखण्ड सरकार ने संस्कृत भाषा को द्वितीय राज्यभाषा घोषित करने के साथ-साथ उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे सरकारी संस्थानों को देकर संस्कृतभाषा के उत्थान में महान योगदान देने का सराहनीय प्रयास किया। इतना ही नहीं अपितु विभिन्न सन्त, महात्मा, मठाधीशों ने संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन हेतु अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार संस्कृत के विद्यालयों, महाविद्यालयों और पाठशालाओं की भी स्थापना अपने आश्रम की भूमि पर की। न केवल इतना ही अपितु उत्तराखण्ड के वासियों ने देवभाषा संस्कृत के विकास हेतु अपनी लाडली सन्तानों तक को इस भाषा के अध्ययन हेतु संस्कृत जगत् में उतारा और सुदूर स्थानों पर स्थित विभिन्न मठ-मन्दिरों में पढ़ने हेतु भेजा। भारत सरकार ने इसके विकास और संरक्षण हेतु भारत के कौने-कौने में जहाँ आदर्श पाठशालाओं को स्थापित किया, वहीं तीर्थनगरी हरिद्वार में एक आदर्श पाठशाला हरिद्वारस्थ प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम के परमाध्यक्ष श्रीगुरुचरणदास महाराज के कहने पर उनके द्वारा प्रदत्त भूमि पर स्थापित की, जिसका नाम उनके एक भक्त के नाम पर श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय रखा गया। इस महाविद्यालय का पिच्चानवें प्रतिशत अनुदान भारत सरकार और पाँच प्रतिशत अनुदान जनकसमिति के द्वारा दिया जाता है। कर्मचारियों का वेतनमान यूजीसी के समान है। सरकार के द्वारा दी गयी राशि का इस महाविद्यालय के आवर्ती और अनावर्ती मद में तथा वेतन में करोडों रूपया प्रतिवर्ष व्यय होता है। छात्रों को छात्रवृति भी सरकार के द्वारा प्रदान की जाती है। इतना होने के बावजूद भी इस देवभूमि में जितना विकास संस्कृत का होना चाहिये वह न के बराबर है। इसका एक छोटा-सा कारण तथाकथित कुछ संस्कृत के विद्वानों का दोगला चरित्र सामने आया है। यद्यपि सभी संस्कृत के विद्वान् इन कुछ तथाकथित विद्वानों जैसे नहीं हैं, किन्तु कुछ भ्रष्ट लोगों ने, जिनका इस भाषा से कोई लेना-देना नहीं है, इस भाषा को अपने कब्जे में लेकर इसे विनाश के कगार पर पहुँचा दिया है। यह कहना है प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी रूपेन्द्र प्रकाश महाराज जी का। वे आज संस्कृत उत्थान कैसे हो विषय पर अपने विचार रख रहे थे। संस्कृत के ह्रास का मुख्य कारण उन्होंने बताते हुए कहा कि प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी भारत सरकार ने लाखों रूपया संस्कृत के शोधकार्य हेतु प्रदान किया है, जिसका व्यय श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य दुरुपयोग कर रहे हैं। 26 मार्च 2022 को अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन आयोजन करने के लिये प्रभारी प्राचार्य बृजेन्द्र सिंहदेव ने कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र पर अध्यक्ष के रूप में डा. महावीर अग्रवाल, सान्निध्य और अध्यक्ष डा. निरञ्जन मिश्र, मुख्य वक्ता डा. शैलेन्द्र कुमार तिवारी, गरिमामयी उपस्थिति डा. भोला झा आदि की रखी गयी है, इन चारों तथाकथित संस्कृत विद्वानों पर श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय को कब्जाने के आरोप में 419. 420. 467, 468, 471 120बी आपराधिक धाराओं में मुकद्दमा दर्ज हो चुका है और आरोपपत्र न्यायालय में जमा है। पूर्व प्रभारी प्राचार्य डा. निरञ्जन मिश्र इसी प्रकरण में एक माह से भी अधिक कारागार में रहकर आ चुका है। ये सब तथाकथित संस्कृत विद्वान् माननीय मुख्य न्यायालय से जमानत लिये हुए हैं। कार्यक्रम में मुख्यातिथि के रूप निमन्त्रित डा. सोमदेव शतांशु अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द महाराज द्वारा स्थापित गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्रोफेसर के पद पर सेवारत है, जिनका नियुक्ति के समय से ही प्रमाणपत्रों और अनुभवपत्रों के फर्जी होने पर निरन्तर विवाद चल रहा है। जिनके पास हाईस्कूल, इन्टरमीडिएट का कोई प्रमाण ही नहीं है। पूर्व में भी इसी विवाद के चलते डा. शतांशु प्रो. रामप्रकाश शर्मा से समझौता करके जूनियर बनाये गये। ये अपनी चालाकी से और उच्चाधिकारियों की साठ-गांठ से बच निकलते है। अब पुनः विश्वविद्यालय के ही प्रो. आर.सी.दुबे, प्रो. सत्यदेव निगमालंकार, प्रो. मनुदेव बन्धु, डा. हरीशचन्द्र आदि ने डा. सोमदेव शतांशु की नियुक्ति को अवैध बताते हुए गुरुकुल प्रशासन को ज्ञापन भी दिया है और इन्हें शिक्षक वरिष्ठता सूची से अलग करने की प्रार्थना की है। जिस पर कार्यवाही चल रही है। महामण्डलेश्वर महाराज का कथन है कि ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के पुरुषों को संस्कृतभाषा के मञ्चों पर बैठाकर और सरकारी धन का दुरुपयोग करके संस्कृत भाषा की उन्नति किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं है, अपितु ऐसे अपराधियों से इस भाषा का ह्रास ही होगा।
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