दीपशिखा ने आयोजित की काव्य गोष्ठी

 दीपशिखा की भव्य काव्य गोष्ठी

      'क्यों एहसानों का बोझा लूँ मैं, जब पंखों में ताकत है'


       हरिद्वार 9 मार्च( सुशील त्यागी साहित्यक संपादक गोविंद कृपा)




अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर आज नगर की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'दीपशिखा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच' ने संस्था अध्यक्षा डा. मीरा भारद्वाज की अध्यक्षता में, उनके राजलोक विहार कालोनी स्थित आवास पर एक भव्काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। इस गोष्ठी में पंचपुरी के अनेक मूर्धन्य विद्वानों और सुकवियों द्वारा नारीशक्ति प्रधान, होलिकोत्सव, मधुमास तथा अन्य अनेक विषयों पर विभिन्न रसों से परिपूर्ण अपनी-अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।

       गोष्ठी का प्रारम्भ माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलन तथा गोष्ठी के संचालक डा. सुशील कुमार त्यागी 'अमित' की सरस्वती वंदना के साथ हुआ। नारी सशक्तिकारण को आज के परिप्रेक्ष्य में उजागर करते हुए डा. मीरा भारद्वाज ने सुनाया- 'संकट विकट मग इतने, कभी नहीं मैं हारी, इतिहास गवाह है रही उदाहरण, मैं भारत की नारी' तो मदन सिंह यादव ने नारी के साहस व शौर्य का बखान कुछ इस प्रकार किया- 'रामकृष्ण, गौतम, गाँधी, यह सब की ही महतारी है, अनुपम साहस शौर्य सरूपा, यह भारत की नारी है। वरिष्ठ कवि महेश भट्ट 'उत्प्रेरक' ने नारी के महत्व का वर्णन कुछ इस प्रकार किया- 'ममता का आँचल है जिस पर, प्रेम की मधुर फुहार लिए, कंटक पथ पर हँस-हँस चलती, वह भारत की नारी है।' 

       वरिष्ठ कवि एवं चेतना पर मासिक पत्रिका के संपादक अरुण कुमार पाठक ने कहा- 'क्यों एहसानों का बोझा लूँ मैं, जब पंखों में ताकत है, क्यों अबला कह लाऊँ मैं, जो बाहों में मेरी बल है', कवित्री प्रियदर्शनी पंत ने अपनी हृदयाघात भावनाएँ इस प्रकार व्यक्त कीं- 'नारी है जीवन की आशा, बिन नारी सब होय निराशा', पं. ज्वाला प्रसाद शांडिल्य दिव्य ने- 'कहा खिले हैं पुष्प दिग-दिगन्त, प्रिय लो आ गया वसंत', कवियत्री डा. प्रेरणा पांडे ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से समझाया- 'क्या जान पाया था मिलिंद, कि तथागत के चेहरे की चिरस्थाई करुणा, किसी प्रायश्चित की उपज तो नहीं?', डा. श्याम बनोधा तालिब ने कहा- 'जिसका कोई अरि नहीं है, तालिब वह शक्ति है नारी', डा. प्रकाश चंद्र पंत 'दीप' ने कहा कि- 'बिना टर-टर के न जिंदगी चले किसी की, सबकी जिंदगी में टर-टर होते हैं', प्रफुल्ल ध्यानी ने कहा- 'माँ की छाती के मध्य छुपी कस्तूरी गंध, छोटी कुदाल के ढेले से फोड़ दी चूड़ियों की खनक', सुशील कुमार त्यागी 'अमित' ने नारी के प्रति अपने हृदयोद्गार कुछ यूँ व्यक्त किए- 'इतना तो तुम ध्यान धरो, नहीं कभी अपमान करो, नारी अपने घर की किस्मत, नारी का सम्मान करो। तुषार कांत पांडेय ने महिला दिवस की उपयोगिता को सिद्ध करते हुए होली के आगमन का संदेश कुछ इस प्रकार दिया- 'लता सी सुहागन के उर में भर उमंग, पर्व होली का आया वसंत के संग संग।

      इस अवसर पर कवि गांग्गेय कमल तथा उमेश शर्मा  ने भी अपनी अपनी कविताओं का पाठ करते हुए, महिला दिवस व होली के पर्व की महत्ता को प्रतिपादित किया। इसके पूर्व संस्था उपाध्यक्ष उमेश शर्मा ने संस्थापक स्व. के.एल. दीवान का स्मरण करते हुए सभी अतिथि कवियों का पुष्पांजलि द्वारा स्वागत-सत्कार किया।

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