ग़ज़ल
जंगल-जंगल भटका होगा।
खुद से शायद बिछड़ा होगा।।
धूप गमों की तेज बहुत थी।
फूल सा मुखड़ा झुलसा होगा।।
मैंने मां को याद किया है।
जो भी होगा अच्छा होगा।।
रब की तो रब ही जाने, पर।
मां का दर्जा आला होगा।।
झूले कितने रोये होंगे।
जब मिलकर वो बिछड़ा होगा।।
गैरों की खातिर रोता है।
दिल का शायद सच्चा होगा।।
महका-महका घर है सारा।
यार मेरा घर आया होगा।।
तेरे बदन की खुशबू से फिर।
जंगल सारा बहका होगा।।
झीने कपड़े पहने होंगे।
मौसम और सुहाना होगा।।
नींद उसे कब आई होगी।
रात गए घर लौटा होगा।।
साथ मेरे चलता रहता है।
मेरी मां का साया होगा।।
तेरी गली का रस्ता भी क्या।
मेरा रस्ता तकता होगा।।
हाल तो कोई पूछे उसका।
'दर्द' बिचारा कैसा होगा।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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