गजल (गुजरगाह)
गुज़रगाह है गुज़रगाह में
ठिकानों का बनाना क्या
इसे बस पार करना है
यहाँ पर दिल लगाना क्या
गुज़रगाह के सभी रिश्ते
ओ नाते बस पलों के हैं
किसी का याद रखना क्या
किसी का भूल जाना क्या
सफर में नफरतें क्यों हों
सफर में वहशतें क्यों हों
जहाँ से बस गुजरना है
वहां उलझन बढ़ाना क्या
सफर में कब मिले कोई
या कोई छूट जायेगा
किसी से क्या गिला रखना
किसी का दिल दुखाना क्या
अंधेरा है मगर इतना नहीं
कि देख न पाओ
निशां कोई नहीं रहता
निशानी फिर लगाना क्या
तेरा मंज़र से रिश्ता
आंख भर के देखने का है
गुज़र जायेगा हर मंज़र
ये तस्वीरें बनाना क्या
गुज़रते धुन्ध से अक्सों में
कोई ढूंढ क्या लेगा
इन्हें बस देखना है -सोम्
इनसे दिल लगाना क्या
।।।। सौमा नायर (आस्ट्रेलिया)
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