ग़ज़ल
नफरतों के बयान रहने दो।
कुछ तो अम्नो-अमान रहने दो।।
कल सियासत के काम आएंगे।
ये सुलगते मकान रहने दो।।
है वतन आपका ये उनका भी।
प्यार को दरमियान रहने दो।।
बर्फ में जल रहा बदन कितना।
धूप का सायबान रहने दो।।
कस रहा तंज है पड़ोसी भी।
ताज की आन-बान रहने दो।।
खत्म सब मसअले हो जाएंगे।
डेढ़ गज की जबान रहने दो।।
इसमें आती है प्यार की खुशबू।
मेरा कच्चा मकान रहने दो।।
ये शगूफे तुम्हें मुबारक हों।
मुंह में मेरी जबान रहने दो।।
जान-पहचान है गजल से भी।
एक ये तो गुमान रहने दो।।
नफरतें पालकर भी क्या होगा।
अब पुराने निशान रहने दो।।
'दर्द' कितना वो खानदानी है।
आज उसका बखान रहने दो।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
1 comment:
वाह!!लाजबाब
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