ग़ज़ल
वक्त पर कब काम आया साहिब।
जिंदगी भर जो कमाया साहिब।।
आंख मुझको ही दिखाता है वो।
हो गया ज़ाया पढ़ाया साहिब।।
पंछियों का है ठिकाना अब तो।
घर जो मैंने था बनाया साहिब।।
सिर्फ फूलों पर नजर कब रक्खी।
खा़र से भी तो निभाया साहिब।।
रात इतनी थी अंधेरी यारो।
रात भर दिल को जलाया साहिब।।
तब हुई ग़ज़लें मुकम्मल मेरी।
खून शेरों को पिलाया साहिब।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
1 comment:
Very nice sir
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