वीर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम के महानायक

 वीर सावरकर और उसके परिवार की नेहरू और उसकी कांग्रेस क्यों करते रहे उपेक्षा आजादी के अमृत महोत्सव काल मे  यह जानना भी जरूरी है ।जेल में बंद कैदी को सरकार दो वक्त की रोटी देती है लेकिन इससे आप कैदी को सरकार का मेहमान नहीं कह सकते।


जेल में बंद कैदी को सरकार काम करने के लिए नाम मात्र के पैसे देती है लेकिन इसे आप सरकारी वेतन या रोजगार नहीं कह सकते।

50 साल की कैद पाए सावरकर को 14 साल जेल में बंद रखने के बाद जब रत्नागिरी में 13 साल नजरबंद किया गया।

उनकी सारी डिग्रियां जब्त थी, सारी संपत्ति जब्त थी, रत्नागिरी से बाहर जाने पर रोक थी।

किसी भी प्रकार का व्यापार, व्यवसाय या पेशा करने पर रोक थी।

गांधी जी की तरह उन्होंने किसी उद्योगपति जमनालाल बजाज को अपना पांचवा बेटा नहीं बनाया था।

और न उन्हें पं. नेहरू की तरह पिता मोतीलाल नेहरू से करोड़ो की संपत्ति ही विरासत में मिली थी।

उनका पैतृक घर तक तो अंग्रेस सरकार के पास जब्त था।


एक परिवार था और आर्थिक तंगी थी।

ऐसे में अंग्रेज सरकार ने उन्होंने राजनीतिक कैदियों को मिलेने वाल भत्ता 5 साल की नजरबंदी के बाद देना शुरू किया।


15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तब उन्हें किसी सरकारी आयोजन में आमंत्रित नहीं किया गया। 

 जबकि बंबई के उनके घर से मात्र 300 मीटर दूरी पर झंडारोहण का सरकारी आयोजन हो रहा था।

लेकिन 2022 में जब देश ने अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे किए तब लालकिले से प्रधानमंत्री ने उनका नाम लिया।


वीर सावरकर का नाम हर बीतते दिन के साथ और बड़ा बनता जा रहा है और जिन्हें लगता है उपहास करके वो उनके नाम और कृत्य को साधारण कर सकते हैं ।


ऐसे इटैलिएन कांग्रेसी, रजाकारों और लीग के राजनीतिक उत्तराधिकारियों को अगले 25 साल के लिए मन पक्का कर लेना चाहिए


उन्हें अभी काफी बुरे दिन देखने हैं।


क्योंकि जो होना है वो होकर रहेगा

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