!! तिरंगा संपूर्ण राष्ट्र की एकता,
अखंडता का प्रतिनिधित्व!!
(कमल किशोर डुकलान रुड़की)
स्वतंत्रता के 75वें अमृत महोत्सव में "हर घर तिरंगा अभियान" भारत की गौरवशाली गाथा अपने आप में ही देश की एकता,अखण्डता,शांति,समृद्धि और विकास पैमाने को दर्शाती हुई दिखाई देती है।
किसी भी देश के राष्ट्र चिन्हों में राष्ट्रीय ध्वज उस देश की गरिमा एवं प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बा़ंधते हुए धर्म,मत,पंथ, सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद से परे हमारा राष्ट्रीय तिरंगा "यूनिटी इन डायवर्सिटी" की आज के समय में सबसे प्रबल अभिव्यक्ति है। स्वतंत्रता 75वें वर्ष में देश भक्ति की भावना का उच्चतम प्रेरणा स्त्रोत हमारा राष्ट्रीय तिरंगा ही है।
आजादी के अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में "हर घर तिरंगा अभियान" अपने-अपने घरों एवं प्रतिष्ठानों में तिरंगा लहराकर मातृभूमि के गौरव को पहचानने और उसकी रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित होने को सन्नद करने की आजादी के 75वें वर्ष अमृत महोत्सव में एक अभिनव पहल है। इस अभियान में शामिल होने से पहले हमारे लिए यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा अगर देखा जाए तो हमारे राष्ट्र के विकास को दर्शाता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुँचने के लिए अनेकों दौर में गुजरा है। एक रूप से तिरंगा राष्ट्र के राजनीतिक विकास को दर्शाता है। इसके लिए हमें अपने गौरवशाली इतिहास जानना आवश्यक है।
भारतीय गौरवशाली इतिहास में सन् 1905 से पहले पूरे भारत की अखंडता को दर्शाने के लिए कोई राष्ट्र ध्वज नहीं था। स्वामी विवेकानन्द की एक ऐसी शिष्या जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत में पहचाना कि यहां की सबसे बड़ी ताकत यहां के आमजन की एकता में है इससे अभिभूत होकर सिस्टर भगिनी निवेदिता भारत की होकर रह गई। भगिनी निवेदिता एक ऐसी महिला शख्स थी जिसने सन् 1905 में भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रुप में राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की थी।
भगिनी निवेदिता द्वारा बनाए गए ध्वज में कुल 108 ज्योतियाँ बनाई गई थी। यह ध्वज चौकोर आकार एवं लाल और पीला द्वि रंगयुक्त था। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम और पीला रंग विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बंगाली भाषा में वंदे-मातरम् लिखा गया था और इसके पास वज्र (एक प्रकार का हथियार) और केंद्र में एक सफेद कमल का चित्र भी था। वर्तमान में इस ध्वज को आचार्य भवन संग्रहालय, कोलकाता में संरक्षित रखा गया है।
सप्तर्षि झण्डा : इसके बाद पहली बार पारसी बागान चौक पर 7 अगस्त सन् 1906 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में ध्वज को फहराया गया। कोलकाता ध्वज प्रथम भारतीय अनाधिकारिक ध्वज था। इसकी अभिकल्पना शचिन्द्र प्रसाद बोस ने की थी। झंडे में बराबर चौड़ाई की तीन क्षैतिज पट्टियाँ थीं। शीर्ष धारी नारंगी, केंद्र धारी पीली और निचली पट्टी हरे रंग की थी। शीर्ष पट्टी पर ब्रिटिश शासित भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते 8 आधे खुले कमल के फूल थे और निचली पट्टी पर बाईं तरफ सूर्य और दाईं तरफ़ एक वर्धमान चाँद की तस्वीर अंकित थी । ध्वज के केंद्र में "वन्दे मातरम्" का नारा अंकित किया गया था। इसी तरह पहली बार विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज मैडम भीकाजी कामा द्वारा 22 अगस्त 1907 को अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस केस्टटगार्ट में फहराया गया था। इस ध्वज को 'सप्तर्षि झंडे' के नाम से जाना जाता है। यह ध्वज काफी कुछ वर्ष 1906 के झंडे जैसा ही था,लेकिन इसमें सबसे ऊपरी पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि के प्रतीक थे।
आंदोलन का हिस्सा बना ध्वज : भारतीय धरती पर तीसरे प्रकार का तिरंगा होम रूल लीग के दौरान फहराया गया था। "होम रूल आंदोलन" के दौरान कोलकाता में एक कांग्रेस अधिवेशन के दौरान यह ध्वज फहराया गया था। उस समय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का प्रतीक था। इसमें 9 पट्टियाँ थीं, जिसमें 5 लाल रंग और 4 हरे रंग की थी। ध्वज के ऊपरी बाएँ कोने में यूनियन जैक था । शीर्ष दाएँ कोने में अर्धचंद्र और सितारा था। ध्वज के बाकी हिस्सों में सप्तर्षि के स्वरूप में सात सितारों को व्यवस्थित किया गया था।
इसके पश्चात वर्ष 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगले वेंकय्या ने बिजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) में गांधीजी के निर्देशों के अनुसार सफेद, हरे और लाल रंग में पहला "चरखा झंडा" डिजाइन किया था जिसे स्वराज का झण्डा नाम दिया गया था। इस ध्वज को "स्वराज झंडे" के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। इस वर्ष तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया,सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था।
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा के बाद, भारतीय नेताओं को स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का एहसास हुआ। तदनुसार ध्वज को अंतिम रूप देने के लिए एक तदर्थ ध्वज समिति का गठन किया गया। श्रीमती सुरैया बद्र-उद-दीन तैयबजी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के डिजाइन को 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा अनुमोदित और स्वीकार किया गया था। समिति की सिफारिश पर 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गए ध्वज में तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं,जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है,बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के विकास और उर्वरता को दर्शाती है। तिरंगे के केंद्र में सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र है, जिसमें 24 आरे (तीलियाँ) हैं। यह चक्र एक दिन के 24 घंटों और हमारे देश की निरंतर प्रगति मार्ग को दर्शाता है।
इस प्रकार 1905 से लेकर 1947 तक के देश में हुए अनेकों परिवर्तनों के बाद हमें अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज प्राप्त हुआ। भारतीय राष्ट्र ध्वज के निर्माण की यह गौरवशाली गाथा अपने आप में ही भारत की एकता,अखण्डता,शांति,समृद्धि और विकास पैमाने को दर्शाती हुई दिखाई देती है।
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