धाद साहित्य एकांश की काव्य गोष्ठी

 अब कहां हैं वो खास दरवाजे'


धाद साहित्य एकांश की काव्य गोष्ठी में कवियों ने विभिन्न विषयों पर पढ़ी रचनाएं


देहरादून 16 सितंबर ( जे


के रस्तोगी संवाददाता गोविंद कृपा देहरादून ) धाद साहित्य एकांश की काव्य गोष्ठी शुक्रवार को हरिद्वार रोड स्थित एक वेडिंग प्वाइंट मे आयोजित की गई। गोष्ठी में कवियों ने विभिन्न विषयों में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।

वरिष्ठ कवयित्री शकुंतला ईष्टवाल ने 'जिंदगी के सफर में अनेकों मोड आते हैं, कोई तोड़ जाते हैं कोई जोड़ जाते हैं' रचना सुनाकर वाहवाही लूटी। कवयित्री कल्पना बहुगुणा की कविता 'ज़िन्दगी की  डायरी पढ़ने लगी हूँ। कुछ लिखावट पहचानने लगी हूँ' भी सराही गई।

रक्षा बौड़ाई जी ने अपनी रचना 'जिंदगी अब हमें भी, मुस्कराना आ गया। दे चाहे सितम तू, गुनगुनाना आ गया। रोक सकता है नहीं कोई उड़ानों को मेरी, हौसले से अब मुझे भी, जगमगाना आ गया।।' से खूब दाद बटोरी। शायर दर्द गढ़वाली के दो शेर 'कितने हैं बेलिबास दरवाजे। अब कहां गमशनास दरवाजे।। एक दस्तक पर मेरी खुलते थे।

अब कहां हैं वो खास दरवाजे।।' को भी श्रोताओं ने दाद से नवाजा। वरिष्ठ शायर शादाब मशहदी ने अपनी नज्म 'सोचा क़िस्मत फिर आजमाएंगे, फिर से रिश्ता नया बनाएंगे

कोई शिकवा नहीं करेंगे हम, उससे इस बार जब मिलेंगे हम, 

दफ़अतन बे-नियाज़ मिलते ही,मुंह से अल्फ़ाज़ ये निकलते ही, हो गईं सब असीर, उम्मीदें, चश्म-गाहों  से उड़ गईं नींदें, 

उसने जब ये कहा कि कौन हो तुम' से सबका दिल जीत लिया। वरिष्ठ कवयित्री डा. विद्या सिंह की कविता 'कभी खुशियों की सौगात, कभी जीवन भर का संताप, दे जाती हैं, हर पल बदलती तिथियां को भी भरपूर दाद मिली। इससे पहले साहित्य एकांश के आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा भी तय की गई। इस मौके पर धाद के महासचिव तन्मय ममगाईं, डा. राकेश बलूनी आदि मौजूद थे।

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