'जीवन क्या है दोधारी शमशीर है'
महिला काव्य मंच की उत्तराखंड इकाई के वार्षिकोत्सव पर कवि सम्मेलन
विभिन्न राज्यों से आए कवियों ने सुनाई देशभक्ति और मानवीय संवेदनाओं पर रचनाएं
देहरादून 4 सितंबर ( जेके रस्तोगी संवाददाता गोविंद कृपा देहरादून )
महिला काव्य मंच की उत्तराखंड इकाई के वार्षिकोत्सव पर रविवार को महादेवी कन्या पाठशाला स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन में जहां कवियों ने देशभक्ति से जुड़ी कविताएं पढ़ी, वहीं मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी रचनाएं भी सुनाई।
कवि सम्मेलन की शुरुआत मां सरस्वती की वंदना से शुरू हुई और इसके बाद काव्य पाठ का सिलसिला शुरू हुआ। संस्था की मार्गदर्शिका नियति भारद्वाज गुप्ता ने 'जीवन क्या है दोधारी शमशीर है,
इसकी खट्टी मीठी सी तासीर है
ना समझे ना समझ सके इसको
कोई अद्भुत मोनालिसा की तस्वीर है।' रचना सुनाकर कवि सम्मेलन की गरिमा बढ़ाई। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष नरेश नाज ने दोहे ' ऊंचे सुर में ना करो मात-पिता से बात। उनके कद के सामने अपनी क्या औकात' सुनाकर माता-पिता की सर्वोच्च सत्ता को दर्शाया।
मुख्य अतिथि और ग्लोबल प्रेसिडेंट नीतू सिंह राय की कविता 'अगर मैं परी होती तो जाती ऐसे गांवों में जहां आज भी पक्की सड़कें नहीं जातीं, जहां आज भी किसान जलता है सूरज के साथ/ और उसका मन जलता है बारिश के बिन।' सुनाकर वाहवाही लूटी।
वरिष्ठ साहित्यकार सारस्वत अतिथि डॉ. सुधा रानी पांडेय ने 'स्मृतियों के कई एकांत श्लथ सम्हाले शब्दों के पेड़ पत्ते समेटे, वही तुम्हारा प्रबल आवेग, नदी का पाथेय है' सुनाकर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। सारस्वत अतिथि डा. सविता मोहन की रचना 'दीदी कविता नहीं लिखती, आंख से बहती कविता, नाक से सुड़क पी जाती है, दीदी कविता नहीं लिखती।' को भी खूब सराहना मिली। संस्था की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष डा. विद्या सिंह ने 'हो जहां पर न्यायसंगत बात कहने की ज़रूरत
होंठ सी लेना नहीं है बुज़दिली तो और क्या है!
देखना चुपचाप लुटती अस्मिताएं
पक्षधरता है नहीं अन्याय की तो और क्या है!' सुनाकर श्रोताओं को सोचने को मजबूर कर दिया। संस्था की जिला इकाई की अध्यक्ष निशा गुप्ता 'अतुल्य' ने नारी शक्ति को जागृत करने वाली कविता 'उठ खड़ी हो बन द्रौपदी, तू धनुष टनकार कर छोड़ अंतर्नाद को तू, जोर से चीत्कार कर' सुनाकर तालियां बटोरी। संस्था की जिला इकाई की उपाध्यक्ष प्रो. उषा झा ने 'पिया तुम्हें सर्वस्व सौंपकर, सब कुछ पाया है। इसीलिए तो मन मंदिर में तुम्हें बसाया है' सुनाकर नारी के समर्पण भाव को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। मणि अग्रवाल 'मणिका' 'तपसियों की कर्मभूमि,देवों का विहार
सुरभि, सुषमा, सौम्यता का कीमती भंडार।
मेरी देवभूमि उत्तराखंड तेरी जय जयकार' सुनाकर उत्तराखंड का गुणगान किया।
इसके आलावा, संगीता जोशी, महिमा श्री गार्गी मिश्रा, शोभा पाराशर, डा. इन्दु अग्रवाल, नीरू नैय्यर 'नीलोफ़र', करुणा अथैया 'किरण', कुसुम पंत उत्साही, नीरू गुप्ता 'मोहिनी', अमृता पांडे, अर्चना झा सरित, झरना माथुर, डा. क्षमा कौशिक, कविता बिष्ट, प्रतिमा मोहन, ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप, कांता घिल्डियाल, विजयश्री वंदिता, डा. नूतन डिमरी गैरोला, माहेश्वरी कनेरी, डा.आशा रावत, डा. ज्योति श्रीवास्तव, डा. नीलम प्रभा वर्मा, हेमा जोशी ने भी काव्यपाठ किया।
इससे पहले संस्था के संस्थापक अध्यक्ष और प्रख्यात शायर नरेश नाज और अन्य अतिथियों ने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की। डा. सुहैला अहमद ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस मौके पर डा. बसंती मठपाल, कुसुम भट्ट, आभा सक्सेना, दर्द गढ़वाली, शिव मोहन सिंह, डा. राम विनय सिंह, शादाब अली, कल्पना बहुगुणा, मंजू काला आदि मौजूद थे।
No comments:
Post a Comment